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१८७ ___.२ अभिषेक कर लिये वाद अत्यंत बारीक और सुकोमल-मुला
यमदार खस श्री जिनजीके अंगोंकों पूंछकर अत्यंत शीतल चंदनादि द्रव्यसें प्रभुजीके तमाम अंग विलेपन करनेके वख्त अपने. अनादिके कपाय तापकी शांति कर लेये. देवेंद्रभी बावनाचंदनादिक उत्तम द्रव्योंस प्रभुको विलेपन करते है. . ३ शीतल द्रव्यसें प्रभुकों विलपन किये वाद नौ अंगमें केसर कस्तूरी-वरास वगैरः सुगंधी परंतुसे तिलक करके विविध प्रकारसें मनोहर अंगरचना-आंगी रची विचित्रवर्णवाले सुगंधी, ताजे, खिले हुवे, अखंड पुष्प उत्तम वरतनमें विधि मुनय रखकर श्री जिनेंद्रजीकों पवित्र फूल अर्पण करनेके वख्त अपने ही मनकी पैसीही उत्तम प्रसन्नता प्राप्त करलकै. सुमनस-पंडित या देवजनकी तरह सुमनस यानि पुष्पसें परम पवित्र परमात्माको परम प्रमोदप्रर्वक प्रजनेसें प्रजक-श्रावक श्राविकाओं अवश्य सौमनस्य-मानकी प्रसन्नताको पावै. जैसें पुप्प आदिक जीवोंको किलामना न होवे, वैसे यतनापूर्वक पुष्पादिक द्रव्योंसें श्री जिनार्चना कर अवश्य स्वपरका हित पाहै. कच्ची तोडडालीहुई पुष्पकलि या पुष्पकी पांखडीयें छेदकर प्रभुजीकों न चढानी चाहिये. पुप्पादिक जीनोंका नाहक किलामना-तकलीफ करनेसें श्री जिनाज्ञाको विसाधना होती है. वास्ते वो लक्षमें रखकर उत्तम पुष्पादि द्वारा भभुकी पूजा करनेसें उत्तम श्रावक श्राविका आप खुदही देवादिकोंको भी पूजनेयोग्य होते है.