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१७२ ___ यहां पर प्यारे भ्राता और भगिनीयोंको आग्रहके साथ कहनेको हैकि जिस प्रकार अपना कल्यान होवे अगर अपने साधर्मीयोंके श्रेय साधनद्वारा पवित्र शासनकी उन्नति-प्रभावना हो उसप्र'कार अहर्निश यत्न करना, यही ए अति अमूल्य मनुष्यजन्मादि
दुर्लभ सामग्री पानेका उत्तमोत्तम फल है. श्रावक धर्मकृत्योंका । उहांपर बहुत संक्षेपसें बयान करनेमें आया है, क्योंकि बहुतकरके
जीवोंका पडाहिस्सा फर संक्षेपरुचीवंत मालुम होता है. विशेष रुचित बाइ भाइयोंकों सद्गुरुकी सम्यग् उपासन करके विशिष्टशास्त्र रहस्य मिलालेनेकी दरकार रखनी दुरस्त है. पवित्र शास्त्ररहस्य मिला लेकर जिस प्रकार तुरत आत्मउपकार और परोपकार कर जगजयवंत श्री जिनशासनकी उन्नति हो उसमकार यत्नवंत रहना. जो अपूर्वशास्त्रहरस्य अपन कों प्राप्त हुवा होय बो दूसरे योग्य जीवोंको समझादेकर कृतार्थ होना, जिसतरह जगत्वति सभी जीव परमपवित्र श्री वीतराग शासनके रागी होवै उसतरह परोपकार दृष्टि से हमेशा चलन रखना, जिसे स्वपर श्रेय साधनद्वारा श्री जैनशासनकी प्रभावना उस्कृष्ट प्रकार की होने पावै. . .
विविध विषय संसह. जिनमंदिरमें संमालने लायक दशत्रिकोंके स्वरुपका बयान.. १ निस्सिही त्रिक-तीन वख्त निस्सिही, २ प्रदक्षिणा त्रिक,