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३ प्रणाम निक, ४ पूजाबिक, ६ अवस्थात्रिका ६ त्रिदिशि निरीक्षण विरति त्रिक, ७ पादभूमि प्रमार्जनत्रिक, ८ वर्णादित्रिक, ९ मुद्रात्रिक, और १० प्रणिधानत्रिक यह दशत्रिकका पाल जीवों के वास्ते संक्षेपसे विवेचन करेंगे. उसमें पहिले निस्सिही त्रिकका अर्थ यह है कि-तीन वख्त ( मंदिरमें दाखिल होतेही) निस्सिही कहना. जो लोग इसका परमार्थ नहीं समझते है, वो लोग शुक पाठकी तरह तीन वरुत बोल देते है। लेकिन किस लिये तीन वरूत कही जाती है उसकी खबर नही होती है। वास्ते उनको उसकी मतलब समझानेकाही हमारा ये देश है. सो ध्यानमे लेकर हरएक त्रिकका परमार्थ समझ, समझाकर अपनी फर्ज विचार श्रम सफल करोगे.
निस्सिहीत्रिक-पहिले श्रीजिनमंदिरके कोटके दरवाजेमें दाखिल होतेही अपने घर संबंधी व्यापारका त्याग करनेरुप पहिली निस्सिही कहनी. प्रदक्षिणा फिरकर मालुम होती हुई आशातना दूर कर मध्य वीचले दरवाजेमें पैठतेही श्री तिनमंदिर संबंधी विकल्पको छोड देनेरुप दूसरी निस्सिही कहना. पाद विधिवत् स्वद्र०५ (चावल-फल नैवैधादि) से श्रीजिनपूजा करके द्रव्य पूजा संबंधी विकल्प तज देने०५ तीसरी निस्सिही कहकर श्री जिनेश्वर प्रभुकी स्तुतिके लिये चैत्यवंदन विधि संमालनी स्थिरता योगसे इरियावही पूचक भावकी विशुद्धि होवै वैसे प्रभुजीके सद्भूत गुणोंका किर्तन करना. __ २ प्रदक्षिणात्रिक-प्रभुजीकी दक्षिण बाजुसें भवभ्रमणा मिटानेकी बुद्धि-इदिसें या ज्ञान पर्शन-चारित्र पानेकी सुषुद्धि से श्री