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उपेंद्रपना-छंद-जिनेंद्रपूजा गुरु पyपास्ति, मत्यानुकंपा शुभपात्र दान;
गुणानुरागः श्रुतिरागमस्य जन्मवृक्षस्य फलान्यभूनी.१ . इन श्लोकमें कहे हुवे श्री जिनेंद्रजीकी पूजा आदि तमाम धर्मकृत्य परमकृपालु प्रभुकी पवित्र आज्ञापूर्वक ही सफल होते हैं. और कहा है कि:
“आणा रहियमाहाणं, पलालपुलुक पडिहाइ” अर्थात् परमपाल श्री तीर्थकर परमात्माकी पवित्र आज्ञारहित किया हुधा-विरुद्ध अनुष्टान धान्य रहित परालके पूले जैसा निःसार मालुम होता है-कुछ शोभता नहीं. वास्ते ज्यौ बन सके त्यौ सापधानीके साथ परम कृपालु प्रभुजीकी परम पवित्र आज्ञाका आराधन करनेकी अवश्य दरकार करनी चाहिये.
फ. लोकप्रवाहमें वहन होकर मुग्ध लोगोंका मन रंजन करनेके वास्ते आगममर्यादा छोडकर मरजी मुजब चलने में बहुतसी हानि होती है, और परम पवित्र आगम मर्यादा संभाल कर-शास्त्र परतंत्र रहकर चलनेसें बहुतसा फायदा है, सोप्रमाद छोड श्री सद्गुरु चरणकमलकी सम्यक् सेवासें परम पवित्र शास्त्ररहस्य मिलनेसें मालुम हो जायगा महाराजश्री यशोविजयजीने कहा है कि:'जन मन रंजन धर्मको मूल न एक बादाम.' यह बहुत गहरे रहस्य वाले वाक्यसें कितना समझनका है ! यदि आपके आत्माका वेशक कल्यान करनाही हो तो सद्गुरु चरणाधीन रहकर चलना. परम पवित्र वीतराग वचन अनुसारही हमेशां जिनका वर्तना आर