________________
जिनशासनके सच्चे आधारभूत या अलंकारभूत पवित्र प्राचीन आगम या जीणमाय भये हुवे जिनमंदिरोंका उद्धार करनेकी ही आजकल सच्ची अगत्यता है. और विवेक पूर्वक उक्त महाकार्यमें द्रव्यका सदुपयोग करनेसें ही पवित्रशासनकीवडी भारी उन्नति या प्रभावना होनेका संभव है. उमीद है कि प्रियभाइ-और भगिनीयोये अति अगत्यकी पात खास लक्ष्यमें ले अनादि प्रिय स्वच्छंदताको छोड शास्त्र परतंत्र रहकर स्वहित साधेगे! या द्रव्य क्षेत्रकाल भाव विचारकर पवित्रशासन के परम रसिक सद्गुरुका सदुपदेशलक्षमें, रखकर ज्ञानकी तालीममें सृद्धि करके दुःख पाते हुवे साधर्मीयोंको उदार सखावतसे उद्धर कर पवित्र शासनकी वडी भारी उन्नति कर आत्म कल्याण करेंगे! कल्याणक अर्थी भाइ भगिनीय विवकसह लदगी, यौवन, और आयुपकी अस्थिरता पूर्ण प्रकार से विचार करेंगे, या गफलत तजकर प्रमाद रहित हो महा भाग्य योगसे प्राप्त भइ हुई ये सर्वोत्तम सामग्रीका यथेच्छ लाभ लेकर स्वजन्म सार्थक करेंगे. क्षणिक यशकीर्तिके लोभमें खींचाकर अक्षय सुखका लाभ न जाने देंगे, और मुग्धजनाको रंजन करनेमें तन मन धनकी आहूती देनस तो परमात्म प्रभुकों रंजन करनेमें अपना सर्वस्व अर्पण करने के वास्ते आगेवानी करेंगे, अपने माणसेंभी परम पवित्र श्री परमात्माकी पवित्र आज्ञाको अत्यंत प्रिय समझकर उनीकी खातिर आपका प्रिय प्राणोंका भी पलिदान देनेमें न डरेगे ! यतः आणाए धम्मो' अर्थात्.