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१६६ आपकों या अन्य जनको उपकारी होवै ? नहीं होवे वास्ते उचित है कि-श्रीमंत श्रावकोंकों पैसे धर्म कार्यमें दीर्घदशी अन्य साधर्मी या निःस्पृह साधु समूहका हितबोध हृदयमें याद रख्ख आगेको कदम उठाना अन्यथा आपके अविवेकसे उलटे श्री संघकों पोजे-भार रुप हो पडै. "प्राचीन जिनमंदिरोंका उद्धार और संरक्षण करनेसें अगणित लाभ है." वो पवित्र वाक्य अधिकारी श्रावक वर्गको भूल जाना युत नहीं है। सवा कि पवित्र शासनका सचा आधार अभी मुख्यतासे श्रीजिनागम और जिन पडिमाओंके उपर हैं. आखिर आंखें खोलकर विवेक जागृत करके समझना चाहिये कि उ पवित्र आगम, आगम घरोंके आधारसे
और पावन जिन पडिमा श्री जिनमंदिरोंके आधारसें रह सकते है, इतनाही नहीं मगर उ# आगम मुजव वर्तनहारे पवित्र आगमधर और विधि मुजव निर्माण किये गये प्राचीन जिन मंदिर जगत् जयवंत जैन शासनके सचमुच अलंकार है. ... श्री भद्रबाहु स्वामी, श्री उमास्वाती वाचक, श्रीसिद्धसेन दिवाकर, श्रीहरीभद्रसूरी, श्रीहेमचंद्रसूरी, वादी श्री देवसूरी तथा महोपाध्याय श्री. यशोविजयजी वगैरः प्रभावक आगमधरोंसें जिस प्रकार जैन शासनका डंका वजा है, तैसेही श्री शत्रुजय, गिरनार, आबु, अचलगढ, राणकपुर, पट्टन, खंभात, तारिंगा-राजनगरादिक अनेक स्थलमें शोभायमान होते हुने प्राचीन जिनमंदिरमे पुराने जिन वियोंसें जैनशासनका जयनाद सर्वत्र फैल गया है. उससे