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भूल जाकर भविष्यमें आपका क्या होगा, उनका भी विचार नहीं कर सकते हैं। वास्ते विषय विवश न होते विवेकी श्रावकको उसी इंद्रियोंको वश कर इंद्रियजीत होना सोही धन्यवादके पात्र है. इंद्रिय दमनसे सद्गति होती है. स्पर्शनंद्रियादिकका सदविवेक द्वारा सदुपयोग-श्रीदेवगुरु संघ साधर्मीककी भति बहुत मान पूर्वक क. रनेसे सुश्रावक आपके यह और परभव सुधार लेता है. और इनस विपरीत वत्तनवाला उभय जना भ्रष्ट करता है. असा समझकर क्षणिक विषय सुखमें न ललचाकर अपना कल्यान हाथकर लेनमें तत्पर रहना; क्योंकि पुनः पुनः सी आत्म साधन अनुकुल सामग्री हाथ आनी बहुत मुश्किल है. __ अहाइसवों-चरण यानि चारित्र-सर्व पिरतीकों अंगीकार करने के परिणाम विवेकी श्रावकको जरुर बने चाहिये. 'सम्यम् दर्शनशान चारित्राणि मोक्षमार्गः' यह पवित्र सूत्रका रहस्य जिसने अच्छी तरहसे जान बूझ लिया होवै. वो एक क्षणभर भी शिध्रतुरंत मोक्ष देनहारे चारित्र धर्मको क्यों भूल जावै ? परंतु परम पारित्र धर्मकी प्राप्ति बहुत करके प्राणियोंकों क्रमशः होता है। वास्ते दिन मतिदिन विरति धर्मको ज्यादे ज्यादे सेवन करनेकी दरकार (વિની. પહિ તો સમય હોદ્ધ પરસ્ત્રી ધરમનાવજ હા महाघोर व्यसनोंका त्याग करना. (इन संबंधमें कुछ सविस्तर हकीकत आगे पृष्ट में कही गई है वहांसें देखकर उपयोगमें ले लेनी.) उसके बाद क्रमशः श्रावकके बारह व्रतोंका पालना हो सके उतना