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१५९ पतके इन्साफ मुजब वीं सद्गुणी जनोंकी ही हर हमेशा जरुर सोपत-संगत दोस्ती करनी चाहिये धर्म विमुखको कपीभी संगति न करनी चाहिये. सद्गुणीके संगसें भी दरकार वाले शख्सको ही फायदा होता है. वेदरकार वाले या प्रमादीको कुछ फायदा नहीं होता है. मणिपर-सांपके शिरपर रहा हुवा मणिमें होरेमें बहर दूर करनेकी ताकत है, ताभी वो वेदरकार होने से उस होरको फायदा उसको कुछ भी नही मिल सकता है. आपका शहरभी दूर नहीं होता उसी मुजब गुणीजन बहुत नजदीक होने परभी दुर्जनखलको जरा साभी फायदा नहीं होता है. जैसे दुर्जन अपनी दुर्जनता नहीं छोड़ देता है वैसेही सजन भी अपनी सजने-सौजन्यता नहीं छोड़ देता है. सांपका झहर कथा उनके शिरपर रहे हुवे होरेम दाखिल हो सकता है ? नहीं हो सकता ! उसी तरह उत्तम सिद्ध स्वभावके गुणी जनोंकी अंदर भी निर्गुणीको असर नहीं हो सकती है। वास्ते वैसे जनकी जरूर सोबत करनीही मुनासीब है. चंदन समान शीतल स्वभाव से अपने सोवतीका ती प्रकार से ताप हरते हैं वैसे संत हर हमेशा सेवन करनेके ही लायक हैं. ___ सत्ताइशयाँ-करण दमा यानि पाचों इंद्रियोंका दमन अवश्य करनाही दुरस्त है क्योकि एक एक इंद्रियके तावे हो गये हुवे विचारे पतंगीए, भौरे, मच्छि-मछलियां, हाथी और हिरन दुर्दशाको पति है, तो जब पांचों इंद्रियों के एक साथ ही ताये हो गये हुवे, का तो कहना ही क्या ? विषय पक्ष हो गये हुवे अपनी शुद्ध बुद्ध