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पालन करनेका अभ्यास पाड प्रतिज्ञा करनी. और पाकी रहे हुदैका अभ्यास कर अनुक्रमसें नियम करना. शक्ति होनेपर भी ऐसी अच्छी सामग्री मिलनेसे प्रभादमें पड़े आपका खास कत्तव्य भूलनेहारे भाग्यहीनकों आगे पर बडा भारी शोच करना पडता है. मुनि महाराजके महाव्रतोंकी अपेक्षासें श्रावकके व्रत बहुतही सर. लतात है. जब मुनि महाराजकों हरएक महावत त्रिविध त्रिविध पालन करनेका है, तव श्रावकोंको अनुवादि भी शक्ति मुजब चाहे उस भांगेसें ग्रहण करनेकी रजा है; तोभी बहुत जन तो ज्ञानश्रद्धादिककी न्यूनतासें उतना भी लाभ लेनेमें भाग्यशाली नहीं हो सकते हैं. श्रेष्ठ श्रावक तो १२ ब्रन् धारनकर सर्वथा सचित भक्षणके त्यागी वनकर सर्वविरति चारित्र धर्मके पूर्ण अभिलाषी होते है. असे विवेकी श्रावक प्रायः चारित्र रत्नकों पाते है. आर्या छंद- संपावार बहुमाणो, पुथ्थय लिहणं पभावणा तिथ्थे;
सहाण किश्चमेयं, निचं सुगुरु वसेणं. १ उन्नतीसवाँ-श्री संघके उपर बहुमान रखना चाहिये, श्री तीथकर प्रभुजीकी पवित्र आज्ञाकों माणसेंभी ज्यादे मिय मानकर सेवन करनेहारे साधु साध्वी श्रावक श्राविकारु५ चतुर्विध संध कहाता है; परंतु परमोपकारी प्रभुजाकी पवित्र आज्ञा उल्लंघन करनहारे जनोंका समूह यानि अपनी मरजी मुजव उलटे वर्तन चला. नहारेको परम पवित्र संघकी गिनतिमें गिनने लायकही नहीं है. उन्होंके आचरण पवित्र आज्ञासे विरुद्ध हैं। पास्ते पवित्र आज्ञा