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चार महीने, पारह मास और जीवन पर्यंतकी है. जिनके सबसे क्रमसें यथाख्यात चारित्र, सर्वविरति चारित्र, देशविरति चारित्र
और सम्यक्त्व गुन ये आते हुवे रुक जाते हैं. और अनंतानुबंधि चौरः बंध हो जाने से सम्यक्त्वादि गुण सहजहीमें प्राप्त हो सकते है. वास्ते अ५९ कहे गये कपाय तापको दूर करने के लिये बहुत भारी प्रयत्न करनेकी जरुरत है. थोडासा भी कषाय विश्वास रखने लायक नहीं है. अग्नि, ण और तृणकी तरह उनकी तर्फ पेदकारी दिखलानेसे बढ़कर बडा भारी नुकशान करते हैं. वो श्रुत केवली मुनीओंकों भी गिरा देते हैं, तो दूसरे अल्पमति सत्वतोका तो कहनाही क्या? ऐसा समझ कषाय-फ्रोध, मान, माया और लोभ इन्होंका सर्वथा त्याग करनेमें ही उधुर रहना यही मुहदय सत्पुरुषकी फर्ज है. दुःख भी कपाय ताप है वहां तकही है. कपाय ताप दूर हो गया के राग द्वेष सर्वथा सत्ताहीन हो जायेंगे.
और वीतरागदशा प्राप्त हुई के आत्मामें सर्वत्र शांति फैलकर कुल उपाधि तथा जन्म मरण भय दूर हो परमानंद रूप सहज शुद्ध
आत्म सुख प्रकट हुवा. जिनका साक्षान् अनुभव श्री वीतरागपली या सिद्ध भगवानकों ही हो सकता है, दूसरे औहिक सुखके अर्थी जनोंकों नहीं हो सकता है.
क्रोध कपायको दूर करने के वास्ते श्रीयशोविजयजी महाराजने कहा है कि:
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