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________________ पंच भवेल पत्त नित जाकुं, ताकी कहाणं कहिये रे . चिदानंद ये वचन सुनाक, निज स्वभावमें रहियैरे. विषय. ७ सर्वज्ञ प्रभु विषयको विषवत् या किपाक फलबते प्राण घातक कहते है. कूत्ते और डूकर की तरह विषयमें ( होनेवालेको कष्ट मात्र फल होता है. हंसवत् विवेकीजन विषय वासनाको छोडकर वैराग्यभाव प्राप्तकर सुखी होते हैं, और वीतरागदशा' साधने के अधिकारी भी वोही हो सकते है. ज्ञानी पुरुषोंने ये मनुष्य भवकी बड़ी भारी किम्मत मकरीर की है, उसका क्षण भी लाखरूपैका कहा जाता है. वैसे किम्मतवंत भवका बन सके उतना फायदा उठा लेनेके वास्ते श्री सर्वज्ञ प्रभुकी आज्ञाका शरण लेना वही लायक है. जैसा परोपकार शील श्री चिदानंदजी बतलाते है:- . ( राग मालकोश) . पूरव पुण्य उदय करी चेतन, नीका नरभव आयारे; पूरव. दिनानाथ दयाल दयानिधि, दुर्लभ अधिक बतायारे; ' दश दृष्टांत दोहिला नरभव, उत्तराध्ययने गायारे. पूरव. १ औसर पाय विषय रस राचत, सो तो मूढ कहायारे; काग उडविन काज विष ज्यों, डार मणि पिछतायारे. पूरब. २ नदी गोळ पाषाण न्यायवत, अर्द्ध वाट तो आयारे । अर्द्ध सुगम आगे रही तिनकों, जिन कछु मोह घटायारे. पूरव. ३ चेतन चार गतिमें निश्चय, मोक्षद्वार यह कायारे; करते कामना देव विण याकी, जिनको अनर्गल मायारे. पूरव. ४
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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