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________________ रनेवाला होता है. एक एक इंद्रियके तावे हो रहे हुवे बिचारे पतंग भंग, कुरंग, पगज और मीन प्राणांत दुःख पाते हैं, तो पांचों इंद्रियों के तावेमें फंसे हुवे परवश पामर प्राणियोंके वास्ते तो __ कहना ही क्या ? उनकी तो पूरी कमवस्ती होती है। तोभी मोहसें मूढ बन गये हुवे लोग परिणामको न सोचतें विषय पास-फंदमें फंसकर हैरान होते हैं. वैसे मुग्ध-अज्ञानी जीवोंके ऊपर अनुकंपा लाकर श्री चिदानंदजी महाराजने कहा है कि (राग प्रभाती.) विषय वासना त्यागो, चेतन, सच्चे मारग लागोरे; जप तप संयम दानादिक सब, गिनति एक न आवे रे; इंद्रिय सुखमें जौलौं ये मन, वक्रतुरंग ज्यौ धाव रे. विषय. १ एक एकके कारण चेतन, बहुत बहुत दुख पावे रे; सो तो प्रकटपणे जगदीश्वर, इस विध भाव लखावरे. वि.२ मन्मथ वश मातंग जगतमे, परवशता दुखपावे।। रसना लुब्ध होय झख मूरख, जाल पऽये पिछतावरे.. वि. ३ घ्राण सुवास काज सुन भौंरा, संपुट मध्य बंधाचे रे, सो सरोजसंपुट संयुत फुनि, करटीके मुख जावेरे. वि. ४ रुप मनोहर देख पतंगा, परत दीपमह जाइरे देखो याके दुख कारणमें, नयन भये हैं सहाइ रे. विषय. ५ श्रोतेंद्रिय आशक्त मिरगले, छिनमें शीश कटावरे - एक एक आशक्त जीव यौं, नाना विध दुख पावरे विषय.६
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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