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रंचक सुख रसवश होय चेतन, अपनो मूल नसायो पांच मिथ्यात्व तुं धारत अन हु, साच भेद नहीं पायो.
मूरख, विरथा.? कनक कामिनी और यहीसें, नेह निरंतर लायो ताहांसें तुं फिरत सोरोनो, कनकवीज मानु खायो.
___ मूरख. विस्था. २ जन्म जरा मरणादिक दुखमें, काल अनंत गंवायो; अरहट घटिका ज्यौं कहो याको, अंत अजहु नहीं आयो.
मूरख. विस्था. ३ लख चोराशीका पहेयर्या चोलना, नव नव रुप बनायो; पिन समकित सुधारस चाख्यो, गिनति कोउ न गिनायो.
मूरख. विस्था. ४ ए ते पर नाहि मानत मूरख, यह अचरिज चित आयो । चिदानंद सो धन्य जगतमें, जिन्हें प्रभुसें मन लायो.
मूख. विस्था. ५ चिदानंदजी महाराजके असे हृदयवेधक बचन श्रवण किये तोभी जिन लोगोंका मद दफै नहीं होता है, और जो लोग बुरी __ आदते नहीं छोड देते है पैसे मूहात्माके कर्मका ही दोष समझ लेना. ____ २ विषय लुब्धता-पांचों इंद्रियोंके शब्द, रूप, रस, गंध और १ आदि विषयमें यानि योग्य द्रव्यमें आश हो जाना-लंपट लबाड बन जाना वो माणी मात्रको परिणाममें बड़ा नुकशान क