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सोही परमात्मा अवस्था है. वो हरएक मोक्षार्थी, सज्जनोंकों राम पादि मलका सर्वथा परिहार करके- सद्विवेक वळसें भाप्त करनी ही योग्य है. एक सर्वज्ञ - उपदेश रहस्यकों समझकर जो महाभाग्य, रुचि प्रीति स्वहृदयमें धारेंगे वो सुविवेकी सज्जनकी समीपमें शिचमुख लक्ष्मी स्वेच्छासें आकर क्रीडा करेगी.
श्री सर्वज्ञ प्रणीत स्याद्वादशैलीको अनुसर के पूर्वाचार्य मसादिकृत भकरणादि ग्रंथोंके आधारसें आत्मार्थी भव्योके हितार्थ, जो कुछ स्वल्प स्त्रमति अनुसारसें यहां कथन करनेमें आया है, उस्में मतिमंदतादि दोषोंसें उत्सूत्र - विरुद्ध भाषण हुवा होवे वो सहृदय हृदय सुधारकर जिस प्रकार जयवंता जैनशासनकी शोभा बढे, जैसे अनादि अविवेक दूर हो जाय, और सद्विवेक जाग्रत होवे, जैसे दुरंत दुःखदायी स्वच्छंद वर्तन छोडकर संपूर्ण सुखदायी श्री सर्वज्ञकथित सनीतिका सद्भावसे सेवन होवे, जैसें सम्यक् ज्ञान प्रकास से व्यवहार शुद्ध होवे, जैसे लोकविरुद्ध त्यागसे शुद्ध देव, गुरु और धर्मका अछे प्रकार आराधन कर, अंतमें अक्षय सुख -संप्राप्त होवे तैसें वर्त्तन रखनेकों सज्जनोंकों मेरी अभ्यर्थना है. नाकदम आजाने तक भी प्रार्थना मंग नहि करनेकी उत्तम नीतिका अबलंगा करके सज्जन महाशय सत्यका प्रथन करना नही चुकेंगे. उत्तम हंसके समान सज्जनजन गुणमात्रकोंही ग्रहण कर औगुण दोष मात्रका त्याग करके जैसे स्व परकी तत्वसें उन्नति साथ सके वैसे ध्यान देके वर्त्तनेकों अवश्य विवेक धरेंगे. आशा है कि, परो
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