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स्व परकी समझ पड गइ हो, ज्ञानादि गुणमय आत्मा सोही में हुं
और ज्ञानादि उत्तम गुण संपत्तिही मेरे सिवाय शरीर, कुटुंब, धन, धान्यादि सब पुद्गलिक वस्तु हैं ऐसा समझने में आया हो वो अंतमा कहाजाता है. और जिसने संपूर्ण विवेकसे मोहादि कुल्ल अंतरंग शत्रुओंका सर्वथा उच्छेद करके विमल केवल ज्ञानादि अनंत आत्मसंपत्ति हाथ की हो सो परमात्मा कहेजाते है. पहिरात्मा, परमात्माका ध्यान करने में नालायक है और अंतरात्मा लायक है. अंतरात्मा, परमात्माका पुष्टालंबनसें १६ श्रद्धा-विवेक प्राप्तकर आपही परमात्मपद मात करता है। वास्ते मोह माया छोड. कर सुविवेकस अंतरआत्मापन आदर आत्मार्थी जनोंने परमात्माके ध्यानका अधिकार-योग्यता मात कर निश्चय चित्तसे परमाताका पद प्राप्त करनेकों प्रयत्न-सेवन करना योग्य है. जन्म, जरा और मृत्युरु५ अनंत दुःख-उपाधि मुक्त सर्वज्ञ परमात्मा हो है, तिनका तन्मय ध्यान योगसे कीट भ्रमर न्यायसे अंतर आत्मा परमात्म पद पाता है. अनंत ज्ञानादि अखंड सहज समृद्धि पाकर परमानंद मुखमें मन हो रहता है. तैसे परमात्माका अक्षय सुखार्थ आमार्थी जनोकों हमेशां शरण हो ! तैसे परमात्माकी भति५ कायवल्ली भव्य प्राणियोंके भवदुःख दूर कर मनेच्छा पूर्ण करो! यावत भव्यचकोर शुक्ल ध्यान पाकर भवभवकी भ्रमणा भागकर संपूर्ण निरुपाधि मोक्षमुख स्वाधीन कर अक्षय समाधिमें लीन हो !!
६६ दूसरेको आत्माके समान जाननासमस्त जीवोंमें जीवत्व समान है, ऐसा समझकर सबको