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________________ ( १७ ) विजय पताका लेखक श्री रामचन्द्र शर्मा वीर अपनी पुस्तिका के पेज १८१ पर भी लिखते हैं कि जैन धर्म और वैदिक धर्म दो होकर भी एक ही हैं । वेद के मूल मन्त्र ॐ का जैन धर्म में वही आदर व सम्मान है, जो एक ब्राह्मण के हृदय में है । ओंकार ऐसा चिन्तामणि है जिसके द्वारा मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर सकता है । छान्दोग्य उपनिपद्, माण्डूक्य - उपनिषद् कठउपनिषद्, श्वेताश्वतर - उपनिषद्, भगवत् गीता, मनुस्मृति आदि में अनेकानेक स्थलों में नकार का वर्णन है । ग्रोंकार के जप और अर्थ के चिन्तन से श्रध्यात्म मार्ग पर चलने वाला सरलता से एकाग्रता तथा अन्मुखता को प्राप्त कर . सकता है । क्रमशः . कार ही ग्रात्मचिन्तन की प्रथम सीढ़ी है । इसके द्वारा ही मनुष्यपूर्ण ब्रह्म की ओर बढ़ सकता है । प्रकार के जप से, श्रध्यात्मिक उन्नति करता हुआ निश्चिय ही आनन्दमय परमपद को प्राप्त कर सकता है । कल्याण दिसम्बर १६५३ अंक १२ पृष्ठ १४६३ पर ओंकार माहात्नय' लेखक डा० मंगलदेव जी शास्त्री अपने लेख में लिखते हैं कि कहने की आवश्यकता नहीं कि वैदिक मार्ग की तरह जैनबौद्ध आदि सम्प्रदाय भी प्रकार के माहात्म्य को मानते हैं ।
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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