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इसके अतिरिक्त कुछ जैन स्थान अन्य देव-स्थानों के रूपों में आज भी पूजे जाते हैं। पी० वी० देसाई के अनुसार बावनकोर प्रदेश के सिरुचारटुमैल नामक स्थान में भगवती का मंदिर है. उसमें महावीर की मूति भगवती के नाम से पूजी जाती है।
मथुरा जिले से कुप्यालनट्टम के निकट पोयइमले पहाड़ी पर प्राकृतिक गुफा में चट्टान काटकर बनायी गई : जैन : मूर्तियां भी अन्य देवता के नाम पर पूजी जाती हैं।। ____ दौलवाण्डी पुरम् में पद्मावती की मूर्ति कालियममा के रूप में पूजी जाती है।
केशरिया जी, श्री ऋपभदेव: उदयपुर, मेवाड़ से करीव ४० मील दूर है, यहां इतनी केशर चढ़ाई जाती है कि सारी मूर्ति केशर से ढक जाती है, यहां भगवान ऋपभदेव जी की प्रतिमा के सामने दुर्गा पूजा तथा श्री मद्भागवत की कथा की पूजा और प्रारती होती है ।
इसी प्रकार कोयम्बटूर जिले में अन्नमल पहाड़ी की उपत्यका में त्रिमूर्ति या टिनिटी का मन्दिर है । यह टिनिटी एक पाषाण पर अंकित जिन प्रतिमा है, जिसके दोनों पोर यक्ष दो हैं, जिसे हिंदू जनता बड़े प्रेम से पूजती है।
कनकगिरी पहाड़ी पर आदिनाथ तीर्थकर का विशाल जिनालय है जो आज भी पूजा जाता है। इसमें जैन तीर्थकों तथा अन्य देवतायों की मूर्तियां हैं। उनमें एक मूर्ति ज्वालामालिनी की है, जिसके पाठ हाथ हैं। अनेक दृष्टियों से इसकी
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१ : जैन साहित्य का इतिहास : पृष्ठ-८१