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'जैन दर्शन--हिन्द दर्शन
एक गुलदस्ता विश्व धर्म प्रेरक मुनि श्री सुशील कुमार जी महाराज
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__ 'निव्वाण सेटठा जह सब धम्मा।' अर्थात सभी धर्मों का ध्येय मुक्ति है। भगवान् महावीर ।।
हिन्दुस्तान में पनपे सव धर्मों को हिन्दू धर्म कहना अधिक उपयुक्त है । धर्म के तीन प्रमुख तत्व होते हैं । एक उसका श्राराध्य भगवान, दूसरा उसका दर्शन, एवं तीसरा उसके आचरण के नियमादि। इन तीनों पर हिन्दुस्तान में पनपे हर धर्म या दर्शन पर उस काल के समय का प्रभाव है, हां दर्शन की उपलब्धि प्रात्म-साधना द्वारा ज्ञान के प्रकाश से सम्बन्धित है । फिर भी उस नवीन दर्शन में पुरातन की पुनरावृत्ति है और मागे विकास है। भगवान महावीर के ग्यारह गणधर थे । वे सब वेदों के प्रकाण्ड विद्वान थे । जव उन्होंने भगवान महावीर के दर्शन का विकास किया तो उसमें वेदों का निचोड़ भी निश्चित रूप से आया है, यह मेरी मान्यता है। इसलिए हम ऐसा मानते हैं कि जव-जव नये महात्मा अपना चिन्तन देते हैं तो उनका लक्ष्य उसमें कुछ जोड़ने से है और उनका लक्ष्य कामा नया धर्म या सम्प्रदाय चलाने का नहीं होता । जन धर्म की भी यही मूल बात है। किसी सम्प्रदाय विशेप में नहीं समाया है। कोई भी वीतराग वाणी में अास्था रखने वाला जैन हो सकता