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. . ( ६७ ) थे। यह पारस्परिक संघर्ष सहोदरों का संघर्ष था ।'.
स्वयं वैष्णव होता हुआ भी महाराज कृष्ण देवराय, हिन्दुनों को सभी सम्प्रदायों (बहुसंख्यक वैदिक पक्ष और अल्प संख्यक जैन, लिंगायत महानुभाव आदि विविध पन्थों) के साथ सहिष्णुता एवं परस्पर के विरोधों को यथा सम्भव टालकर सामन्जस्य कृति से ही बरतता और इस तरह समग्न हिन्दुओं के बीच एकात्मक की भावना को भली-भांति संजोता रहता। विजयनगर राज्य की संस्थापना के साथ शंकराचार्य श्री विद्याचरण्ड स्वामी, सायणाचार्य आदि धुरन्धर नेताओं ने समता और सहिस्णता की ऐसी नैर्वन्थिक राजनीति अपनायी कि हिन्दुओं के सभी पन्थों में सहसा परस्पर किसी भी तरह का कलह उपस्थित न हो सके । जन-साधारण में धर्म प्रचार द्वारा भी स्वधर्माभिमान और स्वराष्ट्राभिमान की यही एक भावना सुदृढ़ की जाती थी कि 'हम सभी एक हिन्दू हैं ।२।
गुप्तवंशीय सम्राट विक्रमादित्य जिनकी राजधानी उज्जिगिनी थी, अपने पराक्रम को गौरवान्वित करने हेतु संवत् प्रारम्भ किया जो विक्रम संवत् के नाम से आज भी वैष्णव व जनों के यहां अपने प्राधिक, पार्मिक व सामाजिक कार्यों में विक्रम संवत लिखा जाता है।
हमें पूरी आशा है कि अब सांस्कृतिक क्षेत्र में भी, अपनीअपनी स्वतन्त्र सत्ता या पृथक संस्कृति का अभिनिवेश या दुरभिमान रखने वाले, हमारे विभिन्न सम्प्रदाय अपने को एक ही । व्यापक समन्वयात्मक भारतीय संस्कृति का अंग समझने
१-हिन्दू धर्म : राम प्रसाद मिश्र-पृ० ७६ २-भारतीय इतिहास के छ: पणिम पृ०-तृतीय भाग-पृ० १०१