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हुए।
जैन धर्म के अनुयायी केवल भारत में हैं । अनेक जैन अत्यन्त सम्पन्न हैं और इनमें निर्धत शायद ही कोई हो । निहित स्वार्थ रखने वाले व्यक्तियों के यत्नों के बावजूद जैन व हिन्दू धर्म अत्यन्त निकट हैं । जैनों में नास्तिकता समाप्तप्रायः है। जैन व हिन्दू (अग्रवाल) परस्पर विवाह सम्बन्ध भी स्थापित करते रहते हैं।२
जैन धर्म के प्रसिद्ध तीर्थंकर ऋषभदेव भी उसके धर्म में एक अवतार हैं । वस्तुत: एवं तत्वतः ऋषभदेव तथा उनके पुत्र भरत को जैन धर्म में प्रावद्ध नहीं किया जा सकता । पुराणों, विशेषत: भागवत के अनुशीलन से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है । ऋषभदेव हिन्दू धर्म से जैन धर्म में लाये गये या जैन धर्म से हिन्दू धर्म में, इसका निश्चित उत्तर देना कठिन है।
ऐसी परिस्थिति में यह मान लेना उचित ठहरता है कि ऋषभदेव हिन्दू थे, कारण दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी मान्यता दे रखी है।
आधुनिक काल-वेद हिन्दू धर्म के इतिहास का सहज काल था, आदि काल था। पुराण-काल में जैन एवं बौद्ध धर्मों से संघर्ष हुग्रा, किन्तु उदारता एवं शालीनता के साथ, क्योंकि ये दोनों धर्म मूलतः भारतीय थे, सारतः हिन्दू धर्म के विकाससोपान थे । तत्वतः शान्ति अहिंसा-मय चिन्तन मनन के परिणाम १-हिन्दू समाज संघटन और विघटन : डा० पुरुषोत्तम गणेश ___ सहस्त्रबुद्ध-पृ० ५६
२-हिन्दू धर्म : राम प्रसाद मिश्र-पृ० १० ....... ३-हिन्दू धर्म : राम प्रसाद मिश्र-पृ० २१
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