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( ५५ ) गया है । तथा एक आदर्श पुरुष के रूप में पहले के प्राचार्यों ने जैन ग्रंथों में इन पर काफी विस्तार से विवेचना की है।
मेरे विचार से तो जैन कोई जाति नहीं थी। जैन एक सिद्धान्त था, जिसको मानने वाले जैन कहलाते हैं, वो हिन्दुओं व भारतीयों में से ही होते थे, वैसे अध्ययन करने से ऐसा प्रतीत होता है कि जैन सिद्धांत भी सनातन प्राचीन समय से ही चला आ रहा है जो इस देश की एक विशेष विचारधारा
__ जैन तीर्थकरों की जन्मभूमि और कल्याण भूमि का सौभाग्य इसी देश को रहा और विशेष विचारणीय वात है कि जैन जितने भी तीर्थ हैं वे सभी इस क्षेत्र के अन्तर्गत हैं, जिनकी विशालता सर्वविदित है।
प्रोसिया नगर जो जोधपुर राज्य में है, वहां प्रोसिया माता का मन्दिर है, जिसकी मान्यता प्रोसवाल जैन तथा राजपूत दोनों में समान रूप से है। इतिहास बताता है कि प्रोसिया एक राजपूत रियासत थी। राजा मय प्रजा के जैन धर्म में दीक्षित हो गये, जब से ही प्रोसवाल जैन कहलाने लगे। ___राजस्थान में जाकर अध्ययन कीजिये । वहां जैन व वैष्णव में कोई फर्क नहीं मालूम पड़ता । सव एक दूसरे के पूरक हैं । हर त्यौहार मिले-जुले माने जाते हैं। राजस्थान के जैनियों के जन्म से लेकर मृत्यु तक के सारे संस्कार ब्राह्मणों द्वारा कराये जाते हैं, वो भी वैष्णव पद्धति द्वारा, यहां तक कि जैन मन्दिरों में भगवान की पूजा के लिए ब्राह्मण ही पुजारी रखा जाता
उदयपुर मेवाड़ में जाकर देखिये, जहां हजारों घर जैन