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जैन-हिन्द एक सामाजिक दृष्टिकोण
जैन धर्म एक सिद्धांत है। हमारा देश जगतगुरु माना जाता रहा है। इसका कारण है, यहां सैंकड़ों सिद्धान्तों और हजारों पन्यों के मानने वाले रहे और आज भी हैं ।
अगर कोई जैन साधु व जैन पण्डित समाज के अन्दर यह प्रचार करते हैं कि जैन हिन्दू नहीं हैं तो समाज को भ्रम में डालते हैं। अपनी विशालता को संकीर्णता की ओर ले जाना चाहते हैं । यह अपनी पूजा व प्रतिष्ठा कायम रखने के लिए एक पॉलसी है। ___मैं आपसे पूछना चाहूँगा कि जैन धर्म के जो चोवीस तीभन्कर हुए हैं. वे क्या राजपूत नहीं थे, उन्होंने अपना राजपाठ त्याग कर जैन गुरुयों से दीक्षा ली और अपने त्याग और तपस्या द्वारा तीर्थकर पद तक पहुंचे, जो जैन भगवान् के नाम से पूजे जा रहे हैं।
जव हमारे देश के क्षत्रिय यथार्थ क्षत्रिय थे। इसलिए उन दिनों भारतीय इतिहास में जो धार्मिक और सामाजिक क्रांति हुई, वह क्षत्रियों द्वारा हुई । यह स्मरण रखना होगा कि बुद्ध और महावीर दोनों क्षत्रिय थे।'
जैन धर्म में श्री राम और श्री कृष्ण को अवतार माना १-भारतीय समाज जीवन और आदर्श-प्रथम भाग-रवीन्द्रनाथ
ठाकुर-पृ० ६०