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प्रेम का सुनहरा वातावरण निर्माण करता है । नाना प्रकार की . धर्मसाधना, कलात्मक प्रयत्न, योग मूलक अनुभूति और तर्क मूलक कल्पना शक्ति से मानव जिस विराट सत्य को अधिगत करता है, वह संस्कृति है । संस्कृति एक प्रकार से विजय यात्रा है, असत् से सत् की मोर, अंधकार से प्रकाश की पोर, मृत्यु से अमृत की ओर बढ़ने का उपक्रम है।'
इस प्रकार कहा जा सकता है कि संस्कृति में धर्म, दर्शन, विज्ञान, कला एवं सम्पूर्ण जीवन का सार तत्व सन्निहित है । इसी क्रम में अब हम हिन्दूत्व शब्द पर भी विचार करना चाहेंगे । हिन्दूत्व मूलतः हिन्दूपन को कहा जाता है। हिन्दूपन के भीतर हिन्दू धर्म, हिन्दू मर्यादा, हिन्दू संस्कृति, हिन्दू सभ्यता, हिन्दू परम्परा, हिन्दू कला आदि सभी कुछ प्रा जाते हैं । हिन्दूत्व का स्वरूप इतना व्यापक है कि इसकी रक्षा के लिए वे भी प्राण देने को तैयार हैं जो हिन्दत्व की दो ही एक वा मानते हैं । दक्षिण के अनार्य कहलाने वाले ब्राह्मण (आदि द्रविड़) भी अपने को हिन्दू कहने में गर्न का अनुभव करते हैं। आर्य समाजी, सिक्ख, जैन, बौद्ध आदि सभी हिन्दू महासभा में सम्मिलित हैं।
दोनों जैन सम्प्रदायों के अन्तर्गत कई पंथ और कई टोले हो जाने के उपरान्त भी जैन लोग हिन्दू देव-देवियों की अभी भी पूजा करते हैं तथा उन पर पूर्ण श्रद्धा रखते हैं। वे बहुत से हिन्दू त्यौहार उसी श्रद्धा के साथ मानते हैं तथा हिन्दु देव स्थानों पर जाकर अपने बच्चों के मुंडन संस्कार एवं विवाह १. साहित्य और संस्कृति-लेखक पं० देवेन्द्र मुनि शास्त्री,
पृष्ठ १८४ २. हिन्दुत्व का व्यापक स्वरूप-हिन्दू संस्कृति अंक-कल्याण .. पृष्ठ ३३६ .
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