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प्रादि के आधार पर "जैन-हिन्द एक सामाजिक दृष्टिकोण" यह प्रमाणित कर सका हूँ।
अपने आपको समझाने के क्रम में प्रायः यह अनुभव करता - हूँ कि इस प्रयास में त्रुटियों का होना असम्भव है। वैसे
भी मनुष्य में दोष और त्रुटियां होती ही हैं। मैं केवल इतना विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि किसी पूर्वाग्रह या पक्षपात से प्रभावित होकर इस पुस्तक के लिखने का प्रयास मैंने नहीं किया, अपनी सामान्य बुद्धि और विवेक से जो कुछ मुझे उचित और विपय-सामग्री के प्रमाण में तथ्यपूर्ण जान पड़ा, उसे ही लिखा है।
सभी विद्वत्-समाज से पुनः विनम्र निवेदन करते हुए मैं यह विश्वास करता हूँ कि यह पुस्तक जैन और वैष्णव की एकरूपता और उनके समन्वयात्मक मूल्यों की स्थापना में सहायक हो सकेगी। वासौदा दाल मिल,
-रतन चन्द मेहता गंज-बासौदा (म० प्र०)