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( १६२ ) मान्यता रही है। . .. .
यज्ञोपवीत. में नौ तन्तुओं का विवेचन निम्न प्रकार किया गया है। (१) ॐकार-एकत्व का प्रकाश, ब्रह्मज्ञान । (२) अग्नि-तेज, प्रेकाश, पापदाह । . (३) अनन्त-अपार धैर्य, अचज्वलता, स्थिरता। . (४) चन्द्रमा-शीतलता, सुधावर्षा, सर्वप्रियता । (५) पितृगण-स्नेहशीलता, आशीर्वाददान । (६) प्रजापति-प्रजापालन, प्रजास्नेह । (७) वायु-बलशीलता, धारणशक्ति । (८) सूर्य-स्वास्थ्य-प्रदान, मलशोषण, अन्धकारनाश, प्रकाश । (8) सर्वदेवता देवोसम्पत्ति, सात्विक जीवन ।'
· काश्मीर हो या कन्याकुमारी, द्वारका हो या जगन्नाथपुरी, प्रत्येक स्थान पर ऐसे व्यक्ति मिल जायेंगे, जो निर्धन हों या धनवाद, समान रूप से अपने शरीर पर जनेऊ धारण किये होंगे। ये धागे भारत की वास्तविक एकता के प्रतीक हैं । विशेपता यह है कि इनसे केवल भौतिक अथवा वाह्य एकता ही नहीं प्रकट होती है, अपितु ठोस और आन्तरिक एकता का भी प्राभास होता है। क्योंकि जनेऊधारी व्यक्तियों की मनोवृत्ति, संस्कृति एवं जीवन वृत्ति में प्रायः एकरूपता होती है । अति प्राचीन काल में कर्मनिष्ठ तथा जागरूक नागरिक की वय पर पहुंचने से वहत पूर्व... कर्तव्य परायणता के लिए सम्मान स्वरूप से सूत्र प्रदान किये जाते थे।' ___ महापुराण में यज्ञोपवीत के लिए ब्रह्मसूत्र, रत्नत्रय सूत्र और यज्ञोपवीत आदि कई नामों का उल्लेख मिलता है । इसकी
१-कल्याण : श्री घनश्याम दास जी जालान ।