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जैन वीर जो पहले वैष्णव थे
युद्ध भूमि में अपने पौरुप एवं पराक्रम को प्रमाणित करने वाले को वीर कहा जाता है । इस क्षेत्र में भी जैनों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है । वीरता किमी जाति विशेष की सम्पत्ति नहीं है । जैन धर्म में दया प्रधान होते हुए भी वे लोग अन्य जातियों से पीछे नहीं रहे हैं । भारतवर्ष की प्रायः सभी रियासतों में कामदार [मंत्री], भण्डारी [ भण्डार पर ], खजांची प्रादि उच्च पदों पर बहुवा जैन ही रहे, जिन्होंने देश की आपत्ति के समय महान सेवायें की हैं । उन्हीं में से भामाशाह, श्राशाशाह, वस्तुपाल, तेजपाल र विमलशाह का नाम बड़ी श्रद्धा के साथ लिया जाता है । इसके अतिरिक्त
१. भारतीय इतिहास के सुप्रसिद्ध म्राट विम्वसार श्रेणिक जैन धर्म का आधार स्तम्भ था ।
२. उनके पुत्र प्रजातशत्र कुणिक जन धर्म के संरक्षक प्रतापी नरेश थे ।
३. सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, जिनका जन्म क्षत्रिय कुल में हुया था, मूलत: जैन धर्म के ही संरक्षकों में से एक हैं ।
४. राजावलिक थे, नामक कन्नड् ग्रन्थ अशोक सम्राट को भी जन बतलाता है । महाकवि कल्हण ने अपने संस्कृत ग्रन्थ 'राजतरंगिणी' में अशोक द्वारा कश्मीर में जैन धर्म के प्रचार करने का उल्लेख किया है ।