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एवं सामाजिक तथा अधिकांश अर्थों में धार्मिक स्तर पर मूलतः जैन और वैष्णव दोनों ही एक ही वृक्ष की शाख होने के कारण स्वरूप और आकार में भिन्न दीखने के उपरान्त भी मूलतः एक हैं और इन्हें तर्क की संकीर्ण एवं दुराग्रही नीतियों द्वारा अलग नहीं किया जा सकता।
कुछ विभूतियां ऐसी हैं जिनका भारतीय संस्कृति पर विशेष उपकार है। आज जिस किसी भी रूप में जैन-साहित्य अथवा जैन आगम परम्परा हमें प्राप्त है उसमें इन महान आत्माओं का योगदान रहा है। १. गौतम गणधर
इनका मूलनाम इन्द्रभूति था, गौतम इनका गोत्र था । आप मगध की राजधानी राजगृह के पास गोबर नाम के रहने वाले थे। २. गणधर सुधर्मा
ये कोललाक सन्निवेश के अग्नि वैश्यायन गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनका जन्म विक्रम से ५५१ वर्ष पूर्व हुआ था। ३. आर्य जम्बू स्वामी-- ___इनके पिता का नाम श्रेोष्ठि ऋषभदत्त और माता का नाम धारिणी था। राजगृह के निवासी थे। वीर निर्वाण के १६ वर्ष पूर्व इनका जन्म हुआ था। ४. आचार्य प्रभव स्वामी
५. ये विन्ध्याचल पर्वत के निकटवर्ती जयपुर नगर के विन्ध्य राजा के पुत्र थे। विन्ध्य राजा कात्यायन गोत्रीय क्षत्रिय थे। वीर संवत् ७५ में १०५ वर्ष की आयु पूर्ण करके आप स्वर्गवासी