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जैन प्राचार्य--जो पहले वैष्णव थे
भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के प्राचीन अध्ययन से इस वात का संकेत मिलता है कि अपनी भीतरी वासनाओं का दमन कर आनन्द की उपलब्धि प्राप्त करने वाले तथा कर्मकाण्ड के खोखले आडम्बरों के विरोध में नैतिक संघर्षों और द्वन्दों को अपने वस में कर जैन अर्थात जिन या विजयी स्वयं को मानने वाले जन सम्प्रदाय एवं अन्य वैदिक सम्प्रदायों ने उत्पत्तिमूलक कोई मौलिक मतभेद नहीं था। __वे सभी वैष्णव ही मूलतः थे जिन्होंने जैन प्राचार्य का पद प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त जैन धर्म को संरक्षण प्रदान करने वाले वहुत से वैष्णव राजवंशी एवं क्षत्रिय वीरों का उल्लेख हमें प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है।
इस देश की कई प्रमुख जातियां जो जैन धर्म को पहले से ही मानती आ रही हैं आज भी उनमें से अधिकांशतः वैष्णव धर्म का पालन करती हैं तथा इस तरह के सामान्य भेदस्तर को मान्यता न देते हुये उनमें परस्पर विवाह सम्बन्ध भी आज स्थापित होते दिखाई पड़ते हैं।
इसी क्रम में जैन प्राचार्यों, प्राचीन वैष्णव राजवंणों जन धर्म में दीक्षित होने वाले वैष्णव क्षत्रियों आदि की विवेचना से में इस बात को और भी स्पष्ट करना चाहूँगा कि सांस्कृतिक