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ज्ञान की प्राप्ति हुई, तब से वे 'महावीर' और 'जिन' (विजयी) कहलाये । उनके नाम से जैन सम्प्रदाय चला । 'भागवत' में ऋषभदेव की कथा आई है, जिसमें यह बतलाया गया है कि उनके जटिल अवधूत वेष से माहित होकर अहत अर्थात जैन सम्प्रदाय चला । जैनों के यहां महावीर के पूर्व २४ तीर्थान्कर याने गये हैं। जिनमें एक ऋषभदेव भी थे । इस तरह उस कथा के साथ इसकी संगति बैठ जाती है । ३० वर्ष तक अपने सिद्धान्तों का प्रचार करने के बाद राजगृह के निकट ७२ वर्ष की अवस्था में महावीर स्वामी ने ईसा के ४६८ वर्ष पूर्व शरीर त्याग दिया।' ___इसके अतिरिक्त अन्य भी बहुत से प्राचीन प्रमाण इस समर्थन में उपलब्ध है कि जैन तीर्थकर वस्तुत: वैदिक संस्कृति के ही अभिन्न अंग थे। अमर मुनि के अनुसार भी भगवान ऋषभदेव तीर्थन्कर का जन्म युगलियों के युग में हुआ था । जव मनुष्य वक्षों के नीचे रहते थे और वन-फल तथा कन्दमूल खाकर जीवनयापन करते थे। उनके पिता का नाम नाभिराजा और माता का नाम महदेवी था। उन्होंने युवा अवस्था में आर्य सभ्यता की नींव डाली । पुरुषों को बहत्तर और स्त्रियों को चौंसठ कलायें सिखायीं। वे विवाहित हुये । बाद में राज्य त्याग कर दीक्षा ग्रहण की और कैवल्य प्राप्त किया । भगवान् ऋषभदेव का जन्म चैत्र कृष्णा अष्टमी को और निर्वाण-मोक्ष माघ कृष्णा त्रयोदशी को हुआ । उनकी निर्वाण भूमि अष्टापद [कैलाश पर्वत है । ऋग्वेद, विष्णुपुराण, अग्निपुराण, भगवत आदि वैदिक साहित्य में भी उनका गुण-कीर्तन किया गया है ।२-3 १-देवेन्द्र मुनि शास्त्री : भगवान् अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्री
कृष्ण-पृ०६ २-गंगाशंकर मिश्र : भारत का इतिहास-पृ० ५४ ३-चिन्तन की मनोभूमि-पृ० ३३-३४, अमर मुनि