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हनार करते हैं तो प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों कानों को एक साथ सत्य नहीं माना जा सकता क्योंकि प्रत्यक्ष ज्ञान का विश्लेष्ण पृच्छन्न रूप से प्रत्ययवाद की ओर से जाता है जो कि जैनों को स्वीकार नहीं और प्रत्यक्षमान को निरपेक्ष ज्ञानभावना मस्तानवादी दर्शन से संगत नहीं है ।