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________________ 19 सन्दर्भ और टिप्पणी प्रयचनसार, पलोक 16. 2. वही, लोक 57,58. अनुयोगमारसूत्र, संपादक हीरालाल जैन, सेठ शिलाबराय, लक्ष्मी बिन्द, अमरावती, पू० 14. 3. ज्ञस्यावरणविनोद यं किमवशिष्यते । अपाप्यकारिणतस्मात् सनाथांवलोकनम् ।। न्यायविनिश्चय विधारण, 3.79 सक्का लियामिदरं जाणादि जुग सलमदोसव्यं । अन विचित विसमं तं वागं स्वाइंघमणिय ।। प्रवधनसार, 1.47 5. सद्रव्यपयारी केवलस्य, तत्यान, 1.30 6. कोण विजाणादि जुग अत्यो कालिकेतिवणो । बाद तस्स तक्क सज्ज्जयं दव्यमेकं च ।। प्रवचनसार, 142 মা শাসকাঠি না। वापिणाषादि बदि जुगर्व कसो सब्याणि जाणादि ।। घही, 149 धीरयन्सपरोदय न घेत्ता कुतः पुनः । ज्योतिज्ञाननिसंवाद शुताच्येत्साधनान्तरम् ।। न्यायपिनिश्चय लोग 414. १. ये कथमः स्यादसति प्रतिबंधारि । दावेऽतिदाहिको न स्यादति प्रतिबंधारि ।। आदागम कृति अनुयोगद्वार सूत्र, पू0 118.
SR No.010238
Book TitleJain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlpana Agrawal
PublisherIlahabad University
Publication Year1987
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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