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4. जैनमत और पाश्चात्य मिथ्या सिद्धान्त
जैनों का मिथ्या त्वसिद्धान्त पाश्चात्य दर्शन में तथा वास्तववादी भांतिसिद्धान्त के काफी समीप प्रतीत होता है ।
माटेग्यू भमान की व्याख्या भौतिक और पारीरिक स्थितियों की सहायता से किसी आत्मगत हस्तक्षेप के बिना करते हैं। ज्ञान की स्थिति की कल्पना माटेग्यू में एक ज्ञानमीमासीय त्रिकोण के रूप में की है। जिसके तीन कोण हैं - वास्तविक वस्तु, उत्पन्न की गयी मानसिक स्थिति, प्रत्यक्षीकृत वस्तु । दूसरी स्थिति तीसरी स्थिति से अवगत कराती है। सामान्य स्थिति में यदि वास्तविक बाह्य वस्तु द्वारा वही प्रभाव उत्पन्न किया गया है तब उस प्रभाव से आपादन द्वारा यथार्थ रूप से उसके कारण को जाना जा सकता है। यहा प्रत्यक्षीकृत वस्तु
और वास्तविक वस्तु एक सी होगी। किन्तु ऐसा हो सकता है कि विभिन्न 'स्थितियों में वही प्रभाव विभिन्न कारणों से हो । वैसी स्थिति में दोनों अनिवार्य रूप से एक नही हैं और भ्रम उत्पन्न हो सकता है। इस प्रकार माटेग्यू के अनुसार भम की उत्पत्ति प्रभावों की विपरीतता से होती है ।
अतः माटेग्यू के अनुसार भ्रम मस्तिष्क के गलत संकेत देने में निहित होता है, जो विभिन्न भौतिक वस्तुओं द्वारा विभिन्न भौतिक और शारीरिक स्थितियों में उत्पन्न होता है या हो सकता है। एक मुड़ी हुई छड़ी को जो जमीन पर पड़ी है सामान्य शारीरिक परिस्थितियों में एक मानसिक स्थिति उत्पन्न करती है जो वही शारीरिक परिस्थितियों में एक आशिक रूप से पानी के अंदर डूबी छड़ी के द्वारा भी उत्पन्न की जाती है। दोनों ही स्थितियों में हमारा मस्तिष्क बाह्य कारण के रूप में एक मुड़ी हुई छड़ी की मानसिक स्थिति से संचालित होता है। पहली स्थिति ज्ञान की स्थिति होगी और दूसरी स्थिति भ्रम की स्थिति होगी। 39
होल्ट के अनुसार भम इस वस्तुगत जगत में विद्यमान विरोधी तथ्यों और नियमों के कारण है। उनके अनुसार एक नियम कहता है ऊपर दूसरा कहता है नीचे