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जैन दार्शनिकों के अनुसार सामान्य और विशेष में अभेद है। तर्क अन्तःपूत्र शक्ति के द्वारा विशेष के प्रत्यक्षीकरण के समय ही सामान्य को भी जान लेता है ।
"तर्क" की जैन दार्शनिकों द्वारा जो परिभाषायें दी गयी है और व्याप्ति निर्धारण की जो प्रक्रिया बताई गई है उसके आधार पर "तर्क" के प्रतीकात्मक स्वरूप का इस प्रकार निर्धारण किया जा सकता है 130
J1M.P
12pm M
138n(GP),w (GP, M)
141 (MSP)
[15] (MSP) VS (MSP)
161P.M)
17ाय
IBIMOP
जबकि
<S U.0 3
#
就
一
接
सहभाव एवं क्रमभाव का अन्वय दुष्टाना भावात्मक उपलम्भ
सहभाव एवं क्रमभाव का अन्वय दृष्टान्त अभाषात्मक उपलम्भ
व्यभिचार अदर्शन - अनुपलम्भ
व्यक्तिगत सुझाव
संशय
संशय निरतन-व्यभिचार अदर्शन के आधार पर
व्याप्ति 1अभावात्मका
व्याप्ति | भावात्मक
हेतु (Middle Term)
विधेय (Predicate)
सहभाव (conjuchen)
आपादन (impacahon) निषेध (Negahon) विकल्प (Disguncher)