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________________ 1 our है वहा आग है 110 सपक्षसत्व भी हेतु की विशेषता नहीं हो सकती। "आवाज शाश्वत है पोंकि प्रवणीय है", इस अनुमान में हेतु प्रवणीयता पक्षा आवाज का तो गुण हो सती है किन्तु सपा अधात् अन्य तत्वों का जो अनंत है जैसे काला का गुण नहीं हो सकती। विपक्षमत्व भी वैध हेतु की विशेषता नहीं हो सकता । और दार्शनिक जब ' वित्व को वैध हेतु का लक्षण कहते हैं तब उससे उनका तात्पर्य होता है कि वैध हेतु विपक्ष में नहीं पाया जा सकता | पहाड़ पर आग है - इस अनुमान में पानी आग का विरोधी है, अतः पानी में gort नहीं पाया जा सकता । जैन दार्शनिक बौनों के मत की आलोचना करते हैं। उदाहरण के लिये "आवाज अनंत है क्योंकि य है। इस अनुमान में हेतु जेयता है जो कि न केवल अनन्त वस्तुओं में है बल्कि सान्त वस्तुओं का भी गुण है । नैयायिकों के मत में वैध हेतु का लक्षण है कि उसे एक ऐसे निष्कर्ष का प्रतिपादन करना चाहिये गो दिये गये प्रधिकरण का विरोध न करता हो। पैनों का कथन है कि हेतु उपर्युक्त बौद्रों और नेयायिकों पारा कथित मिता के रहते हुए भी आभासयुक्त और अवैध हो सकता है। उदाहरण के लिए एक पाय है "वह हरा है क्योंकि वह उसका एक व्यकिा विरोध का दूसरे और पुत्रों के समान पुत्र है। इस वाक्य में हेतु की पूर्वोक्त पाचों विशेषतायें विधमान हैं, किन्तु फिर भी यह अवैध है । बौद्धों का इस उदाहरण के "विष्य में कथन होगा कि इस हैतु में विपक्ष-तत्व की विशेषता नहीं है क्योंकि यह नहीं कहा जा सकता कि जो हरा नहीं है यह अनिवार्यता उसका पुत्र नहीं हो सकता और चूंकि उस " विता का इसमें अभाव है इसलिए हैत अवैध है । जैनों का कथन है कि बौद्रों का उपर्युक्त आक्षम हेतु विषयक इस मत का
SR No.010238
Book TitleJain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlpana Agrawal
PublisherIlahabad University
Publication Year1987
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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