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वोरसेवामन्दिर ग्रन्थमाला
अन्तिमभाग:
अन्तिमभाग:किज्जइ धण सत्तिहि उज्जवणउं,
जे इहु पढइ पढावइ निसुइ कण्णेदइ ।
सो सुर।नर-सुहु भुजिवि पावइ परमगइ । विविह णहावणेहि दुह-दमणउं । प्रायण्णि वि मुणि भासियउ,
७६ सुगंधदहमो कहा (सुगन्ध दशमी. कथा राएं गुण अणुराउ वहंतें ।
कर्ता-कवि देवदत्त लयउ धम्मु साबय जणहिं,
आदिभागःति यरणेहिं विहिउ उत्तम सत्त।
जिण चउवीस णवेप्पिण, ७७ नरक उतारी दुधारसी कथा
झाउ धरेप्पिणु देवदत्तहं चउवीसहं । कर्ता-मुनि बालचन्द्र
पुणु फलु आहासमि धम्मु पयासमि, मादिभाग:
वर सुयंध दसमीहि जिहं ।
पुच्छिउ सेणिएण तित्थंकर कहहि सुयंध दसमि समवसरण-सीहासण-संठिउ
गई जिणिदु णिसुणि अहो सेणिय भव्वरयण गुणरर सो जि देउ महु मणह पइट्ठउ ।
रिणसेणि अवर जि हरिहर बंभु पडिल्लउ,
अन्तिम भाग:ते पुरण णमउंण मोह-गहिल्लउ॥
...जहिकोहु न लोहु सुहि न विरोहु जिउ जर-मरण विवज्जि छह सण जा थिरु करइ वियरइ बुद्धि-पगासा।
.'जहि हरिसु विसाउ पुण्णु ण पाउ तहिं णिवाणु । सा सारद जइ पुज्जियइ लब्भइ बुद्धि-सहासा।
दिज्जउ॥ उदयचंद्र मुणि गणहि जुगहलउ सोमई भावें
मणि अणुसरिउ। ८० मुत्तावली कहा (मुक्तावलि कथा) बालइदु सुरिण णवि वि णिरंतरु णरगउतारी
कर्ता-............
आदिभाग:कहमि कहतरु।
वीर जिरिंणदहं पय-कमलु वंदिवि गुरु गोयमु पणविज्जइ मन्तिमभागः
रयणत्तउ मणिधर वि मई मुत्तावलि-विहाणू-भलु गिज्ज अवर वियहु विहाणजे धण्णा, करहि उदय जुवइहि. संपुष्णा। -
अन्तिमभाग:सग्गु मोक्खु ते लहहि विसिट्ठिउ, जं जिह विणयचंद
जो विहिणावसइ एह विहि सो कमेण जिह पउम रहो।
8 सिव-सोक्ख लहइ सइ उतरे वि भवंसमुद्द दुग्गह लहु ॥' ७८ रविवय कहा (रविवारव्रतकथा)
८१ अनुवेक्खारासो (अनुप्रेक्षारास) ___ कर्ता-कवि नेमचन्द .
कर्ता-कवि जल्हिगि प्रादिभागः
आदिभागःप्राइ अंत जिण वंदे वि सारद घरेवि मणि,
मोक्खह कारण जाणि, भासिय जिणेंद णाणि । गुरु णिग्गंथ णवेप्पिणु सुयणह अणुसरेवि ।
दो दह भावण जाणि मणि भावि जिया ॥छ।।
संपइ पथिर एह जइ सिय विज्जुल-रेहा, पुच्छंतह भन्वयणहं सदुपदेसु चवइ,
सुर घणुहर समु जोव्वणु जिया, दीसइ जु सुंदर दब्बू, माथुरसंघहं मुणिवरु णेमियंदु कवइ।
जाइ सीखयहु सव्वु मोह न जाणसि जीव तुहु ॥१॥ पासनाह रविवार वउ पभणमि सावयह, अन्तिमभाग:जासु करतहं लगभइ सम्पह पाइय पय परहं। जो भावह भावण सारु, मेल्लि वि मण वियारु ।।