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पढहि गुह जे सद्दहि, तेरा सिवसुह लह पत्तें । विएं दिवि पंचगुरु ॥ ३३
७२ विभर पंचमी कहा (निर्भर पंचमी कथा )
कर्ता -मुनि विनयचन्द्र
प्रादिभागः
जैनग्रन्थ-प्रशस्तिसंगह
परविवि पंच महागुरु धरिवि मरणें, उदयचंद गुरु सुमीर विबंदिविबाल मुणें । विरrय चंदु फल्नु अक्इ णिज्झर पंचमिहि, निसुर धम्मकहाण कहिउ जिणागमिहि || अन्तिम भाग:
तिगिरि तल हट्ठियह रासउर, माथुरसंघ मुणिवरु विजयचंद कहिउ । भवियहु पढ पढावह दुरियहं देहु जलु, माणुम करहु मरुसहु मसुरवंचहु प्रचलु । जे (जि) ण भांति भडारा पंचमि पंचपहु, म्हहि दरिसाव अविचल सिद्धि हु ।
७३ कल्याणक रासु कर्ता - विनयचन्द्र
आदिभाग:
सिद्धि-सुहंकर सिद्धि-पहु पणविवि ति-जय-पणासण | केवलसिद्धिहि कारण थुणमि हउ, सयल विजिण कल्याण निहियमल । सिद्ध सुकर सिद्धि पहु ॥ १ ॥ पढम पक्खि दुइज्जहिं प्रासादहि रिसह गव्भुर्ताहं उत्तर साह । धियारी छट्टिहि तंहिमि (हउं )
बंदमि वासुपूज्ज गब्भुत्थउ । विमलु सुसिद्धउ भट्टमिहि दसमिहि मि जिण जम्मरण तह तउ । सिद्ध सुहंकर सिद्धि पहु || २ ||
पन्तिम भाग:
एयभत एक्कवि कल्लाणइ णिवि froaefs प्रहइकल ठाणउ ।
तिहि प्रायं विलु जिरण भणइ
उहिमि होइ उववासु गित्यह । ग्रहवा सयलह खवणविहि विरायचंदु मुणि कहिउ समत्तह
इति श्री भट्टारक विजयiद विरचित कल्याणक विधि समाप्त ।
७४ सोखवइ विधान कथा कर्ता - विमलकीर्ति
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प्रादिभाग:
परविवि तित्थंकर सिद्धि सुहकर सुह संपइविहि मरण हर । गुण गणहर विरयंत वर दितु वोहि महु सुन्दर ॥ अन्तिमभाग:
रिसिहेस विष्ण व मुरिण विमलकित्तित्ति । लहु देहि सत्त सम सिद्धि संपत्ति ॥ घत्ता
जो पढाइ सुइ मरिण भावइ
जि प्रारहs सुह संपइ सोणरु लहइ ।
णाणु वि पज्जइ भव-दुह रिवज्जइ सिद्धि विलासणि सो रमइ ॥
७५ चंदर छट्ठी कहा ( चन्दनषष्ठी कथा ) कर्ता - पं० लाखू (लक्ष्मण)
प्राविभागः
पणवेष्पिण भावें विमलसहावे पाय पोम परमेट्ठि | अक्खमि निय-सत्तिए भवियण भत्तिए जं फलु चंदण - छट्टिहे ॥ अन्तिम भाग:
इय चंदर छठिह जो पालइ बहु लक्ख ।
सो दिवि भुंजिवि सोक्खु मोक्खहु णारों लक्खणु ।।
७६ गिद्द: क्लसत्तमो कहा ( निदुःखसप्तमी कथा )
कर्ता - मुनि बालचन्द्र
प्रादिभाग:
संति जिणि दह पय-कमलु भव-सय-कलु स कलंक निवारु । उदयचंद गुरु भरेवि मरणे बालइंदू मुणि णविवि णिरंतरु ।