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एमाइ बह वणिय-कुल भरि णिवसंति, जिण-पूय-उच्छव सुदाणाई ववसंति । जिम्मल कुलुन्भूय जुबईड जिसहम्मि, कर पूर्व संजुति कय जति सुहकम्मि। तं यह को वएणणेई सुबहसोह
सुरगुरु वि वरणंतु संदेह मह हो । तहि पट्टणि परिदल पट्टणि जिण-पय-पयरुह-ममणिहु । बुद्धिए मेहव विरुसहजपालविरुभयरवालकुल गयणविह
तहु यंदणु मुखियण-पायभत्त, विहलियजणासपूरण सुसत्तु । संघाहिउ सहएव जि पसिद्ध, पउबिह-खंघहं पाए सचिन्द । णियकुल-कुवलय-अरुणीस-तुल्तु, पर-उवयारह जो मशिअमुल्लु । काराविवि जिराहु पहजेण, लच्छिहिं फलु गिबिहड सुहमणेण। तित्ययह गोत्त दुल्लहु शिवर, महिमंडल शिम्मलु सुजस बड़। तोसउ गामें तहु बहुबंधु, सस्थत्थ-कुसल जो सम्वसंधु। जिणचरणकमल-गंधोवएश, तणु सिंचिवि कलिमलु हणि जेवा। संसार-महावय-णासणाई, पविहियई जेण सुह-भावणाई। सग-वसण-तिमिर-घण-चंडरोइ, जिणधम्म-धुरंधरु एत्थु लोह। सम्मत्त-रयण-भूसिय-णियंगु, जे पालिउ सावय-वय अभगु । बुहयण-जणाण जो भत्तिवंतु, बहु सील-सउच्चे अहमहंतु । दाणेण गुणेण वि बाइपवीख, धम्मामएण जसु चितुबीन। प्राजाही पिययम-सुह-बिहाड,
वणिवर-विदह जें बबु मातु । तहुँ पुष तहो भन्वहुँ वियजिय गवहुँ णामु चडावहिक विक जेम जि कालंतरि, इह भरहतरि परिवह मोतजि चितम
जह पयपास-जिणेदह फेरउ, चरिउं रहउं बहु सुक्ख-जयेउ । पुर्ण मेहेसर चमुवइ चरिउं, लोय पयासिङ बहुरस-भरि । खेमसीह वणिणाहु खाने, किं पई परिय चित्तहु में। पुणु तेसहि पुरिस-रयणायक, पवर महापुराणु महसायह।
घु यास विरणतिवसें हिं, पई विरयर्ड पुणु भो पंविष तिह। सिद्धचक्कविहिं पुणे जि परती, हरसीसाहु णि मत्त वित्ती। पुणु बलहर-चरि मुक्खासिड, तहेव सुदंसण-सीलकहासिङ । घणकुमार-पमुह बहु परिवई, जिह पय विहिबई भरिरल-अरिया। सिंह कर वढमाण जिणवाहा, चरि जि केवलवाण पवाहतु। महु पपणे तोसउहु णिमिन, चर्हि तंदुमणि विहिब ममति। संणिसुणिवि हरसिंहहु पुत, खग-भंगुर-संसार-विरत। गुरु-पय-कमल-हत्व धारेप्पियु, कहणा बोखिड ता पपवेप्पिड। हउं तुच्छमई कम्बु किह कीरमि, विशु वोण किम रणहि धीरमि।
यो भावरिलय वायरण तक, सिदंत चरिय पाहुड प्रवक्क । सुदायम परम पुराय गंथ, मावस-संसब-तम-तिमिर-मंथ। किह कानु रयमि गुरु-गव-समुद, को उचाई जिव-समव-मुर। अम्हारिसेहि णिय घर कई बुह-कुलह मजिक उज्मिव-मईदि। बामस्स वि धारण गहनु भन्नु, भो कि कीरिजाचार का।