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वीरसेवामन्दि-ग्रन्थमाला णिय जण जग्गई भासिड जंते,
चहुँ गोउर सोहहिं विष्फुरति, किंचि किंचि मणि मोहु कुणंते ।
अरियण मणमाणहु अवहरंति ॥ णाणावरण-कम्म-खय-कारणि,
दुतिक्खणहं जुतवर जत्थ हम्म, प्रासि विहिय कलि-मन-अवहारणि ।
कस-वष्टिहिं कसियहिं जहि जत्थ भम्म । सिरि चरमिल्ल जिणिंदहु फेरउ,
जिन-चेईहरु जहि मजिममाइ', चरिउ करावमि सुक्खजणेरउ ।
जिण पडिमहिं जुडं सुर-हरु-वणाइंछ । जइ कुवि कहयणु पुराणे पावमि,
जहिं सोहई सरुवरु सलिल-पुण्णु, ता पुण्णहं फलु तुम्हहं दावमि ।।
परिमलजुएहिं कमलेहिं छण्णु । तड्याइ ममाइ तासु पउत्तउ,
रायालउं सोहह जहिं विचित्तु, तेण जि अणुमण्णियउ शिरुत्तड ।
वर-पंचवण्ण-रयणेहिं दित्तु ॥ तं जि सहल करि भो मुणि पावण,
तिक्खालिय-गणहि-भरिय-हह, एत्थु महाकइ णिवसह सुहमण ।।
छुह-पंकिय जहिं दीसहि विसट्ट । रइधू णामें गुण गण धारउ,
बावार करहिं जहिं वणिय-विंद, सो को लंघइ वयण तुम्हारउ ।
सच्चेण सउच्चे जे अशिंद। तंणिसुणिवि गुरुणा गच्छह गुरुणाई सिंहसेणि मुणेवि मणि
खडतीसयवणि जहिं सुहि वसंति, पुरु सठिठ पंडिउ सील अखंडिउं भण्डि तेणा तं तम्मि खणि
वित्तानुसारि दागाइं दिति। भो सुणि कइयण-कुल-तिलय-तार
अण्ण जहिं सावय विगयविभावय शिवसहि जियपयभत्तिरया। णिवाहिय णिच कहत्तभार ।
छक्कम्महिं जुत्ता वसब-विरत्ता पर-उपयारहं शिल्च-रया ॥॥ जिण-सासण-गुण वित्थरण दच्छ,
जो अयरवाल-कुल-कमल-भालु, मिच्छत्त-परम्मुह भाव-सच्छ ।
वियसावणि गुण-किस्पाहि पहा । महु तणउं वयण प्रायणि पप्प,
गरपति बामें संबहु महारु, अवगणहि बहु विह मण-विषप्प ।
संघाहिड परिवार संचमार॥ जोयणिपुराउ पच्छिम दिसाहि,
तहु मंदाबील्हा साहुजार, सुपसिद्ध यह बहु सुह-अयाहि ।
जियधम्म धुरंधर विगय-पाउ। णामें हिसारपिरोज अस्थि,
सम्माणिड जो पेरोजसाहि. काराविउ पेरोसाहिज सत्थि।
तहु गुण वएपणि को सक्कु प्राहिं ॥ वण-उववणेहि चडपास-किरण,
तहु णंदणु हवा वेवि इत्थ, पंथिय-जणाहं पह-खेडं विसु ।।
बाधू साधू गामें पसत्य । चित्तग तरंगिणि अह गहीर,
बाधू सुमो जाउ दिवराज सुपसरलु, वय-हंस-चक्क-मंडिय स.तीर ।
दालिदतिमिरंखयह ह रविविमएणु ॥ जहिं वहह सुहासु समु जलु मुबिछु, सयलहं जीवहं पोसण समिटु ।।
• तहिं मुबिका हुउचित सिद्धसेणु, परिहा-जल लहरि-तरंगरहि,
बो सिद्ध विद्यासिनि तबड कंतु । जा सेवह सालहु अहमणिसेहिं ।
वहो सीसु जाउ मुणि कणयकि (1) सप्पुरिसहु संणिहु गाहणारि,
जो भन्य-कमल-मोहब-दिहिंदु ।।। थक्की अवरु डिवि सुक्खयारि ॥
चारों पक्रियां भवामंदिर धर्मपुराकी अपूर्ण प्रतिमें जहिं पायार वि सुज्झजियपसत्य,
और सेठकेचा मन्दिरके शास्त्रभण्डारकी प्रतिमें नहीं रेहति तिरिय उत्स'ग जत्थ।
हैं। किन्तुमार सिदान्त भवनकी प्रतिमें पाई जाती हैं।