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वीरसेवामन्दिर-प्रन्थमाला णंदउ जिणवारद जिण-सासणु,
बुहयण रोसु ण करहु महु उप्पार, दय-धम्मु वि भन्बह पासासणु ।
अहरोसें सोहिज्जहु गंथु वरि ॥ णंदउ णरवह पह पालंतउ,
विसमड गामिणि वज्जउ मंदल, णंदउ मुणिगणु सुत-तउ-वंतउ॥
गच्चउ कामिणि होउ सुमंगलु । णंद जिण सुहमग्गि चरंतड,
गुरयण वच्छल्लें पंडिएण, भवियणु दाण-पूय विरयंतउ ।
माणिक्कराज वज्जिय-मएण॥ कालि कालि धाराहलु वरिसर,
तं पुण्णु करेप्पिणु एहु गंथु, दुक्ख-दलिह, दुहिक्खु विणिरउ ॥
टोडरमल्ल हत्थे दिएणु सत्थु । घरि-घरि णारिउ रहस ब्वउ,
णिय सिरह चढाविउ तेण गंथु, घरि घरि मंगलु गीउ पदरिसउ ।
पुणु तुट्ठउ टोडरमल्लु हियइ गपि ॥ घरि-घरि संखु समुहलु वज्जउ,
दाणे सेयांसह कण्णु तं पि, घरि-घरि लोउ सुहेहें रंजउ ||
पंडिड वर पट्टहिं थविउ तेण । चउविह संघह दाणह पोसणु,
पुणु सम्माणिउ बहु उक्कवेण, जिणवरिंद-सुय-गुर-पय अरचणु ।
वर वत्थई कंकण-कुंडलेहिं॥ णंदउ टोडरमल्लु दयालउ,
अंगुलियहि मुहिम णिय-करेहि. पुत्त-कलत्त-सुयण-पइ-पालउ ।
पुजिउ अाहारहि पुणु पुणु तुरंतु । जावहि मेरुचंदु रविणहयलि,
हरि रोविव सजिड विणयं शिरुत्तु, णंदड एहु गंथु ता महियलि ।
गड णियरिं पंडिड गंथु तेण । भवियण लोयह पाढिज्जंतउ,
जिण-गेहि णियउबहु उच्छवेण ॥ यंदउ चिरु दुक्खिउ विहुणंतउ ॥
तहि मुणिवर बंदहि सुक्क गैथु, विक्कमरायह ववगय-कालें,
दिएणउ गुरु-हत्य सिवह-पथु । बे समुणीस विसर अंकालें ।
विस्थारिउ अत्यु वियारि तेण, पणरह सइ गुण्णासिह उरवालें,
भब्वयणह सुहगइ दावणेण ॥ फागुण चंदिण पक्खिससिवालें।
पुणु टोडरमल्लहं णिवसरि पुण्णह लिहयाइ गंथ बहुसुच्छविह
जिणगिह मुणिसंघहं तव-वय-वंतहणाण दाणु तं दियणु बरु॥ णवमी सुह एक्खित्त सुहवाले, सिरि पिरथीचन्दु पसायं सुंदरें।
शुभंभूयात् । प्रधान ११.. हुउ परिपुराणु कम्वु रस-मदिरु,
प्रति आमेरभंडार लिपि सं १५३२ सज्जण-लोयह विणड करेप्पिणु ॥ ३५-सम्मइ-जिणचरिउ(सन्मति-जिन-चरित्र)कवि रइधु पिसुण-वयण कद्दमेण भरेप्पिणु,
आदिभागविरयड एहु चरित्तु सुबुद्धिउ ।
जय सररुहभागहुँ वढियमाणहु वड्ढमापतित्येसरह । जह यहु अस्थ-मत्त होणउ हुउ,
पणविवि पय-जमलं णह-पह-विमलं चरिउ भणमि तहहय सरह ता महु दोसु भन्बु म गहियउ॥
धीरस्साणंत वित्ति प्रमर-चदि-णुदं धम्मभूयादमाई, विणवह माणिक्क कई इम,
बडा कम्मडवित्ति परमगुणस्साहिरामं जिणस्स । महु खमंतु विबुह गुणमंतिम ।
वंदित्ता पाय-पोमं ति-जय मणामुयं धम्मचक्काहिवस्स, भएणुवि अमुणते हीणाहित,
वोच्छ भम्वत्थजुत्त प्रणह-सुहहरं तच्चरित पवित्त ॥३॥ मइ-जलेण जं कायमि साहिउ ॥ तं जि खमड सुयदेवि भडारी,
फेवलणाण-सतणु-पहवंती, कायण-जण तिल्खोयह सारी।
साय-बाय-मुह-कमल हसंती।