________________
जैनान्य-प्रशस्विसंमा
[६१
..........................
कोह-मोह-भय-माण-वियारउ,
तहिं निगमंदिरु धवलु भब्वु, जं अक्खरु य किंपि विण्यासिड ।।
सिरि प्राणाह जिणबिंब दिन्छ । सुपसाएं वि विरुद्ध भासिड,
तहिं शिवसह पंडिय सहखणि, सिरि-जयसवाल-कुल-कमल-तरणि ।
इक्खाकु वंस महियलि वरिट्ट, हं सरसह महु खमह भंडारी॥
बुह सूरा यंदणु सुउ गरिछ । वीर जिणहो मुहु गिग्गय सारी,
उप्पएणड दीवा उरि रवण्णु, जे धारे ते भव-सरि-तारी।
बुहु माणिकु णामें बुहहि मण्णु ।। हेम-पोम पायरिय विसेसें,
तत्यंतरि सावउ इक्कु पत्त, बंभुज्जाणं गुण गरियाणहीसें।
वय दाण-सील-णियमेण जुत्त । मह कस बहिय बण्णधरेप्पिण,
बुहयण रंजणु गुण गण विपालु, कव्व सुवरणहु बीह वि देप्पिशु ।
विच्छिण्ण वत्थ दिपंत भालु ॥ मत्त-प्रत्य-सोहग्ग लिवेवियु,
धम्मथ काम सेवंतु संतु, प्रत्थ-विरुद्ध किहि कविणु॥
तस जीव दयावह सिरिमहंतु । सोहिउ एहु विमणु लाएविशु,
मेहब्व धीरु गुणगण-गहीरु, होउ चिराउसु कम्वु-रसायणु ।
जिण-गंधोवय-णिम्मन सरीरु ॥ विक्कम रायहु ववगय कालई,
परवइ सह मंडणु सव भासि, लेसु मुणीस विसर अंकालाई ।
गोहाण गौहु सुय सील-रासि । धर्राण अंक सहु चइतवि मासे,
चंदुम्व भुवण-संतावहारि, सणिवारें सुय पंचमि दिवसें।
वर स्व स उण्णउ णं मुरारि ॥ कित्तिय गक्खत्त सुह जोएं,
छह अंग विहूसिउ णं महेसु, हुड उप्पएणउ सुत्तु वि सुह जोए ।
मंदारय पुज्जिउ णं महेसु । हो वीर जिणेसर जग परमेसर एत्तिड बहु महु दिज्जर।
जिण पयसी संकिड णीलकेसु।। जंहि कोहुण माणु पाव व जाणु, सासव-पप महु विजय ॥१५
रस देसण पालड सुयण-तोसु, इब महाराय-सिरिनमरसेब-चरिए चढवग्ग-पुकह
सिरि ठाकुराणि जिणधम्म धुरंधरु । कहासमरसेण-संभरिए सिरिडियमाणिक्कु-विरइए साधुसिरि
सुरवइ.करभुय जुयले हिं विमलु, महणासुय-बउधरि-देवराजणामंकिए सिरि अमरसेणमुनि
सिरि जइसवाल इक्खाकु वंसु ॥ पंचमसग्ग-गमणवरणयो याम सतम इमं परिच्छेमो
सिरि जगसी गंदणु सुदर्वसु, सम्मत्तो ॥७॥
टोडरुमल णामें घर पयलु । -प्रति आमेर भंडार सं०१५७७
जं कित्ति तिलोयह पूरि थिरु॥ कार्तिकवदी चतुर्थी रविवार सुवर्णपथ (सुनपत) ते भाइ वि जिणहरि णयणाणंदणि पाइणाहु जिणवंदियउ । में लिखित।
पुणु दिद्रुड पंडिट भवियण मंडिउ मह विणयं अभत्थियड । ___३४-णागकुमारचरिउ (नागकुमारचरित) xxx
कविमाणिक्यराज रचनाकाल स. १५७६ इय-वय-पंचमि सिरिणायकुमारचरिए विबुह-चित्ताणुआदिभागः
रंजिये सिरिपडिय-माणिक्यराज-विरहए चउधरिय-जगसी प्रन्थ प्रतिमें भादिके दो पत्र न होनेसे उससे भागेका सुप-राय-जय-बउधरि टोडरमल्लयामंकिए जयंधर-विवाहभाग दिया जाता है:
वण्णणो शाम पढमो संधि परिच्छेभो समत्तो। अन्तिम भाग :