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वीरसेनामन्दिर - प्रन्थमाला
जसु वणियकित्ति गय दल दिसासु, जो दिंतु या जाग्रह सह सहासु । जसु गुण कित्तणु कश्या कुति, अणवर बंदियण बिरु थुयति । जो गुप-दोसई जायई वियार,
जो परवारी-रह- सिम्बियार । जो रथात्तय-भूलिय- सरीरु, पडिवण्या-क्या धुर धरय धीरु । हथील्हा ग्रामेय साहु, गुरुभति व्यविय तिल्लोक बाहु । तस्सालय अवरुवि मल्लिदासु, को वयियाबि सक्क गुण-सहासु । जिन कुंथुदासु ब्रहमर भाइ, जिा पुज्ज पुरंदर गुण विद्दाइ । ता भाई भील्हू ते धयावंत, कुल-बल लच्छी हर व्यायवंत । असवर भ्रमइ जणि जगि जाएं क्रिति, धवलंती लय पर धरति । ता पुण हवेह सुकसय, श्रहवा सुहि पुत सुकितयेय । धनुदित कित्ति पसरेह लोह, याचि दिज्जद्द तो जस- हाथि होइ । अहं किं पु धम्मि जाम, किराणु बिहाइ धरणियति ताम । सुकइसे जा गिरि-सरि-धरति, ससि सूरि मेरु व्यक्त पंति । सुकन्तु वि पसरवि भविवयम्मि, संसग्र्गे रंजिय सज्जयम्मि । अहसावम कुछ तो महु पहाणु, लेहावभि संभव-जिय पुराणु । तर्हि गुण सागर जब तोल्लायर जिया सासा भर विम्वहणु सावय-थय पालड सुद्ध, सुहालउ दीयायाह रोस - हर ॥५॥ धम्मे तव पुत्रा, समसम्व सुहवारि, चारण कण्णु बल-रूवे कंसारि । समदिट्ठि वर वंसि बियगोति यहि- चंदु, जियाधम्मंवर मुक्ति सावय मयायं । लखमदेव सोभब्य सुप्पुत्त महि धरण,
गि।
यामेव शील्ह | जिर्ण भक्ति सुत्तामु,
तें भविडं कइ इक्क दिय हम्मि सिरिधाम । जिग्राह कम मूर्ति सिर थाइ थिक संतु, अक्खे विथ कज्न सिरिमंतु सु-महंतु । भो पंडिया लड् वर कव-कय-सति, प्रणवश्य पविहिब आजम्म जियभत्ति भव-दुइ-तरंगाल - सायर-तरंडस्स, यां महिय रहयाहु गुणमणि करंडल । बहुमेय दुछ-कम्मारि-हय जेवण, परिधविय भव्वण दयधम्म अमिए । इंडवि उ या तब तिब्व दिसी दियदस्स, पाइडहि वर कम्बु संभव-जिदिस्स ।
तं विधि विभासइ सरि विसरासह तेजपालु जयमि तु बहु । तव-बय कम-उज्जमु पालिय संजमु श्रवहत्थिय गिहदंड दुहु ( ? )। ६ भो विसुयि थील्ह वर सुद्धर्वस, पिय-कुल- कमलायर - रायहंस । मणिमलिय वि दुस्समु कालुए, दुयमाणविवज्जिड दुक्ख - गेहु । पर परवर एवहि धम्महीया, बहु पावयम्म विवेण खीय । जो जो रु दीसय सो तु मिस, किंह अस्थि पयइ मज्कु चित् । जिया संभवहो चरिउ एम, यायry कहमवि कहनि केम ।
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इस संभव-जियाचरिए सावय-विहायफल भरिए पंडियसिरितेजपालविरइए सज्जासंदोह - मय्यमणुमणिए सिरिमहाभव बील्हा सवण भूलये सिरिविमलवाहयणिव- धम्मसवण-वण्णणो णाम पढमो परिच्छेची समतो ॥१॥ अन्तिम भाग
अयरवाल कुल-यहिं दिवसाहित, भीतर गोतु गुणेय य साहिउ । यावडिकुल देवय संतुङ,
धय' 'धयधार पउट्ठड। सोता संघाहिउ चिरु हुंदड, यि वित्त सिरिहलु भुं जंतर । चविह संघभत्ति जे दाविय, जे जियाबिंब पडठ कराविय ।