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________________ जैनग्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह [२७ जिण परिमालकिड गच्छमाणु, अन्तिमभाग:णं केण विभिउ सुर-विमाणु । मुणिवर-णयणंदि-सपिबद्ध पसिद्ध, जहिरामणदि गुण-मणि-णिहाणु, सयलविहि-विहाणे एत्य कन्वे सुभग्वे । जयकित्ति महाकित्ति वि पहाणु । अरिह-पमुह-सुत्त-वृत्तु मागहणाए इय तिषिण वि परिमण-मई-मइंद, पणिउ फुड संधि अट्ठावणं समोत्ति ॥ मिच्छत्त-विडवि-मोडण-इंद। संधि ॥ (प्रति भामेर भंडार,सं. १५८०) पत्ता १८ अणुवय-रयण-पईव (अणुवत-रत्न-प्रदीप) सिवपुर गच्छत तिहुयणहो णं ग्यणत्तय सोहण । -कवि लक्ष्मण, रचना काल सं० १३३ पादिभाग:दरसिय अहवीरें गणहरु, कलिकाल हो पडिबोहण ॥३॥ रामणंदि पत्तिड मणिट्ठड, णत ण जिणे सिद्ध पायरिए पाढए य पम्वइदे । अणुवय-रयण-पई सत्थं वुच्छे णिसामेह। जहिं जिथं समंसि वि शिविठ्ठड । तहिणिए वि भन्वाहिणंदिणा, इह जउँणा-इ-उत्तर-तडत्थ, सूरिणा महारामणंदिणा। बालइंद-सीसेण जंपियं, मह णयरि रायवडिय पसत्य । धना-कण-कंचना-वण-सरि-समिड, सयत-विहिणिहाणं मणप्पियं । दाणुएलपकर-जब-रिद्धि-सिद्धि । कह दिणाई पारंभिउ पुणा, किम्मीर-कम्म-णिम्मिय रवण्य, कीस-विट्ठसे-चित्त-दुम्मणो। सहन-सतोरण-विविह-वण्ण। त सुणेवि णयदि बोल्वाए, पंडुर-पायारुण्णइ-समेय, मणु करिंद-करणेब डोल्लए। नहि सहा पिरंतर-सिरि-निकेय । रहए कन्वे इयभत्तिणिज्झरा, चउहह चच्चरुहाम जत्य, कासु सत्ति बेहावये परा । मग्गण-गण-कोलाहल-समय । कहा तासु सो भरहरिद्धए, जाहिं विषणे विवणे पण कुप्पमंड, वर वराडदेसे पसिदए । जहिं कसिमाहि विच्च पिसंडि-खंड। कित्ति-जडिछ-सरमह-मणोहरे, मिचिच्च-पाण-संमाण-सोह, वाडगामि महि महिन-सेहरे। जहि वसहि महायण सुद्ध-बोह। जहिं जिशिंद-हर-पह-पराजिया, ववहार-चार-सिरि-सुद-खोय, चंद-सूर आहे जंत बजिया। विहरहिं पसरवा चवरण बोष। तहिं जिलागमुच्चय अलेवहि, जहिं करायचूड-मंडला-विलेस, वीरसेण- जिसेण देवहि । सिंग्गार-सार-कय-निरवसेस । गाम धवल जयधवल सय, सोहमा-लग्ग-जिग-धम्म-सील, महाबंधु तिरिणसिदत सिव-पहा । माशिशि-णिव-पह-वय-वहण-वीन । विरहज्य भवियहं सुहाविया, महिं परण-पऊरिय-पएन-साब, सिद्धिनमणि-हाराच्च दाविया । णापर-परेहिं भूसिय विसाव । सुंदरोउ अहिं कवि धांजड, थियजा बिंदुज्जन जणिय-सम्म, इस सयंभू भुवणं पिरंजर। कडग्गि-थयाववि-रू-धम्म । पत्ता-सवसिरि-सरसइ-कंठाहरण सिद्धतिय विक्साहिं। पउ-सालुण्णय-तोरण-सहार, बहिहिमि तेहि पथरिय सहहिण जिणु तिषण राहिर बहिं सहहिं लेय-सोहख-विहार।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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