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________________ २४1 वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला रयणत्तय-भूसणु गुण-निहाणु, अण्ण मणई रसमोहिय चित्तई। अण्णाण-तिमिर-पसरंत-भाणु । लक्षण-छद-रहिउ हीणाहिउ, गुदिज नयरि जिण पासहम्मि, न मुणंतेण एत्थ किर साहिउ । निव संतु संतु संजणिय-सम्मि । तं महुँ खमहु विबुह-चिंतामणि, अह अज नियवि पासहो चरित्तु, सत्त भंगि नय-पवर-पयासणि । अम्भत्थि वि मविय जणेहि वृत्त । जांतइ लोयसिहर-पुरवासहो, छंदालंकार-ललिय पयत्यु, कमठ-महासुर-दप्प-विणासहो । पुणु पासचरिउ करि पायउत्थु । चउ-भासामय-सावण-चंदहो, घत्ता अइसयर्वतहो पास-जिणंदहो। तें तहिं गुण गणहरि गोंदिज पुरवरि णिवसंतह पासहो चरिउ पत्ता मुह-कुहर निवासिणि भुवणुब्भासिणि कुपय-कुपत्थ-कुनय-महणि अक्खर-पय सारहं प्रत्थवियारहं सुललिय छंदहिं उद्धरिउ ॥१२॥ सा देवि सरासह मायमहासइ देवयंद महुँ वसउ मणि ॥१३॥ दुबई सिरिपासणाह-चरिए चउवग्गफले भविय जणमणाणंदे पास-जिणिंद-चरिउ जगि निम्मलु फणि-नर-सुरह गिज्जई। मणिदेवयंव-रहए महाकवे एयारसियाइमा संधी समत्ता ॥ फुड सग्गापवग्ग-फल पावणु खणु न विलंबु किज्जए॥ (मेरे पैतक शास्त्रभंडारसे सं० १५४६ की खंडित प्रतिसे) अणु दिणु जिण-पय-पोमहि नवियहं, १५-सयलविहि-विहाणकव्व(सकलविधि-विधान-काव्य) कवि नयनन्दी गंथ-पमाणु पयासमि भवियह । श्रादिभाग:नाणा छद-बंध-नीरंधहि, धलव-मंगल-णंद-जववह-मुहलंमि सिद्धथवि, पासचरिउ एयारह संधिहिं । परलोय-हरिसु ब-संकमिउ-सग्गाउ जिणु । पउरच्छहि सुवण्णरस घडियहि, जयउ पुरिम-कल्याण-कल सुव श्रह णं सिद्धि-बह-विमल दोनि सयाई दोन्नि पद्धडियहिं । मुत्तावलिहि णिमित्त सुह सुत्तिए ।पियकारिणिह सिप्पिहि चउवग्ग-फलहो पावण-पंथहो, मुतिउ खित्तु ॥ सई चउबीस होंति फुड गंथहो । जिण-सिद्ध-सूरि-पाढय सवण, जो नरु देइ लिहाविउ दाणई, पणवेप्पिणु गुरुभत्तिए। तहो संपज्जइ पंचई नाणइं। णोसेस विहाण णिहाण फुड, जो पुणु वह सुललिय-भासई, करिम कव्व मिय-सत्तिए॥ तहो पुगणेण फलहिं सव्वासहं । पयासिय-केवलणाण-मोह, जो पयडत्थु करे वि पउंजइ, परामर-विंदरविंद-पबोह। सो सग्गापवग्ग-सुहु भुजह । वियंभिय--पाव-तमोह-विणास, जो पायब चिरु नियमिय मणु, णमामि अहं परहंत विणास । सो इह लोइ लोह सिरि भायणु । णिरामय-मोक्ख णहंगण-लीण, दिणि दिणि मंदिरि मंगलु गिबाइ, कयावि ण वडिव्य हो परिहीण । नच्च कामिणि पडदु पवज्जा । कलंक-विमुक्क जगत्तय-वंद, निप्पजहिं भुवि सम्वई सासई, णमामि सुसिद्ध प्रणोवम चंद। दुहु-दुभिक्खु-मारि-भउ नासहं। अलंध महंत खमासुणि सरण, अण्णु विजं मइंकब्बु करतई, अथग्य-महारयणावलि-पुषण ।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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