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________________ १४ घता दसाय असु दुरउ विलज्जइ, पुराण-हेड ज जणि मयियज्जइ । वीर सेवामन्दिर - प्रन्थमाला श्रमियगइ महामुणि, मुणिचूणामणि, सितिस्थु समसील - धणु । कित्ति समत्थउ, विरय बहु-सरथड सगुणादिय-विवइ-मणु ॥ ५ ॥ गणि संतिसेगु तो जाट सीस, यि चरण-कमल-णामिय- महीसु । माहुर-संघाहि श्रमरसेणु तो हुड विड पुणु हय-सुरेणु । सिरिसे सूरि पंडिय पालु, तो सीसु वाइ-कायाया- किसाणु । पु दिक्खिड तो तबसिरिखिवासु, अस्थिया संघ बुद्द पूरियासु । परवाइ· कुंभ-दारण महंदु, सिरिचंद कित्ति जायड मुबिंदु । तो सहोयर सीसु जाड, मणि अमरकित्तिविहणिय पमाड । ग्रहणि सुकत विज्ञोय ली, जामच्छ - विह-सुब-पवीणु । तामयाहिंदिखि बिहियाबरे, गायर-कुल-गया- दिसरेण । चिणि गुणवालहं यदय, अवदिषयदाय पेरिय मयेय । पत्ता भब्वमय पहार्यो बुहगुण जायें, बंधवेव श्रणुजाय । सो सूरि पवित्तड, बहु विय्यत्त, भक्तिएँ अंब पसाई ॥ ६ ॥ परमेसर पहुं वरस - भरिड, विरहयड रोमि । हहोचरिउ । धविवरितु सम्वस्थ-स हड, पत् महावीरहो बिहिउ । सीड चरितु जसहर- शिवासु । पढडिया-बंधे किड पयास् । टिप्पण्ड धम्मचरिय हो पयड़, तिह विरइड जह बुज्मे जह । सक्कम-सिलोय - विही जाणिवदिही, गु फिड सुहासिब रयथा किही । धम्माव एस - चूडामायाखु, तो माण-पईड जि माय सिक्खु । छक्कम्मुवएसेंस पबंध, कय भट्ट संख सई सच्चसंध | सक्कय-पाइय कव्वय घणाई, अमराई कियहूं रंजिय-जयाई । पईं गुरुकुलु ताय हो कुलु पविन्तु, कसा कि महंतु । कड्या-वयणाम जेपियंति, अजरामर होइ त्रि से नियंति | जिद्द राम-पमुह सुरकितिवंत, कहमुह- सुदाइ पेच्छहि नियंत कइ सुटु काप्पापरु समग्णु, अक्खयत कर पसिद्ध गणु । घत्ता मंतोसहिं देवहं किय चिरसेवहं, धुब पहाट गहु सीसई परकाय-पवेसणु, किय-सासयतणु तिजिह क्रहिं पदीसह ॥ ७ महु माहासहि पणिय सम्मई, ग्रह काहों गिहि- छक्कम्मई । जाई करंतर भविय संच, दि िदिणि सुहु दुक्कवहिं विमुच्च । तेहिं विवज्जिड परभड भव्वहं, सुग्गा-गल-भय-समु गय-गब्बई (१) महंमदमूढें कि पिचितड, पुण्यकम् इव कम्मु पवित्तर | भव-कायणि भुल्हो महु अक्सहि, सम्म मग्गु सामिय मा बेक्खहि । अमरसूरि तवयणायंवर, test गिहि छक्कम्म वित्यरु । सुधि कण्हपुर वंस - विजयदय, थिरूवोहिय-मयरदय | पूयच देवहं सुह-गुरु बालखा, समय - सुद्ध-सम्झाय-पवासया । संजम-तव- दाई संगुराई, जिसबि छक्कम्मई बुराई । घसा-रब-सुख, सलाहिं चराउ, गुण-सील-तड-हणिय-मलु |
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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