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२३ श्रावकधर्म सूत्रचरित्र धारक गुरो ! करुणा दिखा दो, चारित्र का विधि विधान हमें सिखा दो । ऐसा सदैव कह श्रावक भव्य प्राणी, चारित्र धारण करें सुन मन्न वाणी ॥३०१।। जो सप्तधा व्यसन सेवन त्याग देते, भाई कभी फल उदुम्बर ग्वा न लेते । वे भव्य दर्शनिक श्रावक नाम पाते, धीमान धार दृग को निज धाम जाते ॥३०२।। रे मद्यपान परनारि कुशील खोरी अत्यन्त क्रूरतम दंड, शिकार चोरी भाई असत्यमय भाषण द्यूत क्रीड़ा ये सात हैं व्यसन, दें दिन-रैन पीड़ा ॥३०३ है मांस के प्रशन मे मति दपं छाता, तो दर्प से मनुज को मद पान भाता। है मद्य पीकर जुमा तक खेल लेता यों मर्व दोष करके दुख मोल लेता ।।३०४॥ रे मांस के प्रशन मे जब व्योम गामी, आकाश मे गिर गया वह विप्र स्वामी, ऐमी कथा प्रचलित सबने सुनी है। वे मांस भक्षण प्रतः तजते गुणी हैं ॥३०॥ जो मद्य पान करते मदमत्त होते, वे निन्द्य कार्य करते दख बीज बोते । सर्वत्र दुःख महते दिन रैन रोते, कैसे बने फिर मुखी जिन धर्म खोते ॥३०६।।