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(मा) निश्चय चारित्र मात्मार्थ प्रातम निजातम में समाता, मच्चा सुनिश्चय चरित्र वही कहाता । हे भव्य पावन पवित्र चरित्र पालो पालो अपूर्व पद को, निज को दिपालो ॥२६॥ शुदात्म को समझ के परमोपयोगी, है पाप पुण्य तजता घर योग योगी मो निर्विकल्प मय चारित्र है कहाता, मेरे समा निकट भव्यन को मुहाता ॥२६९।। रागाभिभूत बन तू पर को लखेगा, भाई शुभाशुभ विभाव खरीद लेगा। तो वीतराग मय चारित से गिरेगा मसार बीच पर चारित से फिरेगा ॥२७०।।
हो अन्तरंग बहिरग निसग नंगा, सुद्धात्म में विचरता जब साधु चंगा। सम्यक्त्व बोधमय प्रातम देख पाता, प्रारमीय चारित सुधारक है कहाता ॥२७१॥
मातापनादि तप में तन को तपाना अध्यात्म मे स्खलित हो ब्रत को निभाना हे मित्र! बाल तप सयम मो कहाता, ऐमा जिनेश कहते, भव में घुमाता ॥२७२।।
लो! मास माम उपवाम करे रुचि मे, प्रत्यल्प भोजन करे, न डरे किसी से । पैमात्म बोघ बिन मढ़ बती बनेगा, ना पर्म लाभ लवलेश उसे मिलेगा ।।२७३॥
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