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२० सम्यक्वारित्र सूत्र
(म) व्यवहार चारित्र सूत्र होते सुनिश्चय-नयाश्रित व अनूप, चारित्र और तप निश्चय सौख्य कृप । 4 व्यावहार-नय-प्राश्रित ना स्वरूप चारित्र और तप वे व्यवह र म्प ॥२६२॥ जो त्यागना अशुभ को शुभ को निभाना मानो उसे हि व्यबहार चरित्र बाना। ये गुप्तियाँ ममितियां व्रत आदि सारे, जाने सदैव व्यवहारतया पुकारें ।।२६३॥ चारित्र के मुकुट में मिर ना सजोगे, आमढ़ संयममयी रथ पे न होगे । म्वाध्याय में रत रहो तुम भले ही ना मुक्ति-मंजिल मिले, दुख ना टले ही ।।२६।। देता क्रियारहित ज्ञान नहीं विराम, मार्गज्ञ हो यदि चलो न, मिले न धाम । किवा नहीं यदि चले अनुकूल वात, पाता न पोत तट को यह सत्य बात ।।२६५।।
चारित्र-शून्य नर जीवन ही व्यथा है, तो पागमाध्ययन भी उसकी वृथा है। अन्धा कदापि कुछ भी जब ना लवंगा जाज्वल्यमान कर दीपक क्या करेगा ? ||२६६॥
अत्यल्प भी बहुत है श्रु न ही उन्ही का, जो संयमी, सतन ध्यान धरूं उन्हीं का । सागार का बहुत भी श्रत बोध "भाग" चारित्र को न जिमने उर से मुधारा ।।२६७।।
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