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जो जानने मुनि निजातम को यदा है, वे जानते नियम से पर को तदा है, है जानना म्वपर को इक साथ होता ऐसा जिनागम रहा, दुख सर्व म्वोता ।।२५७।। जो एक को महज से मुनि जानते है, वे सर्व को समझते जब जागतं हैं। यों ईश का मदुपदेश सुनो हमेशा । मक्लेग द्वेष तज शीघ्र वनो महेशा ।२५८॥
मद्बोधि रूप मर में दुबको लगा ले मंतप्त तू स्नपित हो सुख तृप्ति पा ले। तो अन्त में बल अनन्त ज्वलन्त पाके विश्राम ले, अमित काल म्वधाम जाके ॥२५॥
महन्त स्वीय गृह को द्रुत जा रहे है वे शुद्ध-द्रव्य गुण पर्यय पा रहे है। जो जानता यति उन्हें निज जानता है संमोह कर्म उसका झट भागता है॥२६०॥ ज्यों विन बोट म्वजनों नहि दूमरों में, भोगी मुभोग करता दिन रात्रियों में । पा नित्य ज्ञान-निधि, नित्य नितान्त ज्ञानी त्यों हो मुखी, न रमना पर में अमानी ॥२६१।।
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