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१८ सम्यक्सान सूत्र
सत् शास्त्र को सुन, हिताहित वोध पामो, प्रादेय हेय समझो, सुख चूंकि चाहो । प्रादेय को झट भजो, तज हेय भाई ! इत्यं न हो कुगति से पुनि हो सगाई ॥२४५।। प्रादेश, ज्ञान प्रभु का शिव पंथ पंथी, पाके म्वमें विचग्ने, तज सर्वग्रंथि । सम्यक्त्व योग नप मंयम ध्यान धारे, काटें कुकर्म, निज जीवन को सुधारें ॥२४६॥ ज्यों ज्यों नामानिधि में डुबकी लगाता, त्यों त्यों बनो नव नवीन प्रमोद पारा । वैराग्य भार बढता श्रुतभावना हो, श्रद्धा न हो दृढ़, नगे फिर वामना हो ।।२४७ । सूची भले ही कर में गिर भी गई । खोती कभी न गदि टोर लगी हुई हो। देही ससूत्र यदि को श्रुत नोध वा, होता विनष्ट भन में न रहे खुशाला ॥२४॥ भाई भले तुम बनो बुध मुख्य नेता, वक्ता कवि विविध वाडमय वेद वेत्ता । माराधना यदि नही दग की करोगे, तो बार-बार तन धार दुखी बनोगे ।.२४९।। त् राग को तनिक भी तन में रखेगा. शुद्धात्म को फिर कदापि नहीं लखेगा। होगा विशारद जिनागम में भले ही मारमा स्वदीय दुख से भव में रुले ही ॥२५०।।
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