________________
योगी सुयोगरत हो गिरि हो अकम्पा, धारो सदैव उर जीव दया नुकम्पा । धर्मोपदेश नित दो तज वासना दो, ऐमा कगे कि जिन धर्म प्रभावना हो।.२४३।।
वादी सुतापस निमिन मुगात्र ज्ञाता, श्री मिद्धिमान, वप के उपदेश दाता । विद्या-विशारद, कवीश विशेपवक्ता होता प्रचार इनमे वृष का महत्ता ॥२४४।।
.
L